________________
जैन चित्र कथा जीवंधर कुमार ने यक्षेन्द्र द्वारा दी हुई विद्या-'कामरूप का स्मरण करके अपना वृध्द रुप बनाया और सुरमंजरी के महल पर जा पहुचा।
कुमारीतीर्थ? हा.. ह..हा..हा.. मूर्ख है... जाने दो.. अभी लौट आएगा...इस
नामकातीर्थ भला यहां कहां?
हा..हा.. सुरमंजरी को इससे भला क्या इर १ बेचारा बुढा... उसकी डाट खाकर लौट आएगा।
ऐ।बुढढ़े। यहा क्या लेने आया
है?
PERTAL
मैं कुमारी तीर्थ खोजने निकलाहूं।
और वृहद वेशधारी जीवधर,सुरमंजरी के पास पहुंच गया।सुरमंजरी ने उसका स्वागत किया और उसे भोजन कराया।
भोजन कराने के बाद... महापरुष। आप मुझे जानी लगते हैं। कृपया बताएं कि मेरा
मनोरथकब सिहद यदि तुम मंदिर चलकर
होगा? कामदेव की पूजा करोतो
तुम्हारा मनोरथ शीघ ही पूरा होगा। मेरे साथ चलो, मैं वह पूजा करादूंगा।