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जैन चित्रकथा दंडक वन में पहुंचकर माता विजया और जीवधरकुमार-दोनो हे पुत्र क्या तेरे मन में) एक दूसरे को देखकर प्रसन्नता से विहवल हो उठे।
अपने पिता के राजपदको राणा गरमा
पाने की इच्छा नहीं है? तेरेपासन धन है,न सेना। इसलिए मुझे संदेहहो
रहा है।
माताजी। आप चिंता न करें। मैं अपने पिता के राजपद को अवश्य प्राप्त करूगा।
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हे माता । अब आपने मुझे राज्यपद प्राप्त करने का स्मरण करा दिया है सो' मुझे युध्द के लिए तैयार होना पड़ेगा। तब तक आप यह आश्रम छोड़कर मामाके यहां रहें। वहा आपको भेजने PRG
की व्यवस्था में कर देता हूं।
ठीक है पुत्र। जो उचित है,वही मैं करूंगी।
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अब जीवधरकुमार राजपुरी गए और उसके निकट एक उपवन में ठहर गए।
छाएका बयर
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