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श्री जीवंधर स्वामी एक दिन जीवंधर कुमार राजपुरी नगरी में घूम
जीवंधर कुमार उस महल के अंदर गये और ऊपर चढ़ गए। रहे थे कि एक गेंद ऊपर से उनके पैरों पर आकर हे भद्र पुरुष। आवका स्वागत है। मैं सेठ सागरदत्त हूं। गिरी। ऊपर देरवा तो उस गेंद को खेलने वाली और यह मेरी पुत्री विमला है। आज मेरे बहुत से आभूषण एक सुंदर कन्या रखड़ी थी। जीवधर कुमार उसे जो बिक्री के लिए लके हुए थे-बिक गए। यह आपके पुण्य देखते ही उसपर मोहित हो गए।
प्रताप से हुआ है। अस्तु में आपके साथ अपनी पुत्री का विवाह करना चाहता हूं।
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प्रता
बुदिषेण ! तू मुझे चुनौती दे रहा है ? अरे विदूषक। मैं वह भी करके दिखा दूंगा।
जीवंधर कुमार ने विमलासे विवाह किया किंतु वहां अधिक समय नरहकर अपने मित्रों केवास उपवन में आ गए।
जानते हो? सुरमंजरी ने अपने महल के चारों और वीर नारियों का पहरा लगा रखा है। तुम वहां जाही नहीं
सकते। विवाह
क्या करोगे?
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लगता है, कुमारने किसी सुंदरी से विवाह किया है।
बधाई हो।
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22 ऐसेतो कोई कितनी ही नारियों से विवाह करले। उससे क्या होता है ? मैं तो तब मान जब ये सुरमंजरी से विवाह करके दिखाए। उसने प्रतिज्ञा कर रखी है कि वह किसी) पुरुष को देखेगी भी नहीं,