Book Title: Jeevandhar Swami
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 16
________________ हे स्वामी! मैं खेती करता हूं और | सपरिवार सुखी हूं । जैन चित्र कथा हे किसान ! खेती आदि से प्राप्त सुख तो नश्वर है। सच्चा सुख तो मोक्ष प्राप्त होने पर ही प्राप्त हो सकता है तब जीवंधर स्वामी ने उसे अपने समस्त आभूषण तथा मूल्यवान वस्त्र दान में दे दिए। आगे चल | कर जीवधर आत्मा का उत्तम सुख सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चरित्र के पूर्ण होने पर ही मिलता है। इसलिए | हे कृषक ! तू नश्वर वस्तुओं का मोह त्यागकर आत्मा का सुख प्राप्त कर। गृहस्थ धर्म को स्वीकार करके भी यह सुख किचित प्राप्त हो सकत है। ऐसे लोग व्रत वृक्ष | कुमार एक उपवन में पहुंचे, जिसके। फलों से लदे थे। वहां एक राजकुमार धनुषबाण से आम का एक भी फल नहीं गिरा सका था। किंतु जीवंधर कुमार ने एक ही बाण से उस फल को गिरा दिया । Bre हे धर्नुधारी महापुरूष मैं और मेरे ये भाई, हेमाभा नगरी के राजा दृढ़मित्र के पुत्र हैं। हम सब मूर्ख हैं। हमारे पिता हमें शिक्षा देने के लिए एक धनुर्धारी की खोज कर रहें है । क्या | आप उनसे मिलने का कष्ट करेंगे ? 14 धारण करते हैं और श्रावक जीवंधर स्वामी के इन उपदेशों को सुनकर कृषक ने गृहस्थ धर्म स्वीकार कर लिया | कहलाते है।

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