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श्री जीवंधर स्वामी जीवंधर कुमार ने उन राजकुमारों को बड़ी ही लगन राजकुमारी कनकमाला से विवाह के पश्चात जीवधर कुमार से शिक्षा दी, जिससे वे गुरु के समान विद्वान हो । एक वर्ष तक हेमाभा नगरी में रहे। एक दिन एक सुन्दर गए। हे जीवधर कुमार आपने मेरे
स्त्री उनके पास आई। राजकुमारों को शिक्षा देकर जो उपकार किया है,
हे भद्रपुरुष। यह कैसी विचित्र बात है उसके बदले मैं अपनी कन्या का विवाह आपसे
कि मैंने आपको यहा और आयुधशाला करना चाहता हूं।
में- एक ही समय में दोनों स्थानों
पर देखा है।
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महाराज दृढमित्र आप की आज्ञा मुझे स्वीकार है।
इसका अभिप्राय कहीं नंदादय से तो नहीं है? संभव है वह यहा आ गया
हो?
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जीवंधर कुमार तुंरत ही आयुधशाला पहुंचे। वहा सचमुच नन्दादय से भेट होगई।दोनों भाई मिलकर अत्यंत प्रसन्न हुए।
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हे बंधु तुम यहां कैसे आए?
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हे अग्रज। मैं आपके वियोग में दुखी रहताथा। एक दिन भाभी गंधर्वदत्ता के पास गया। उन्होंने कहा-दुखी मत हो, तुम्हारे भाई अत्यंत सुखपूर्वक हैं। तुम कहो तो मैं तुम्हें अपनी विद्या से उनके पास पहुंचा दूं ? और इस तरह उन्होंने मुझे यहां भेज दिया। उन्होंने आपके लिए पत्र
भी दिया है।
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