Book Title: Jain Tattvavidya Author(s): Tulsi Acharya Publisher: Adarsh Sahitya SanghPage 15
________________ वर्ग १, बोल ३ / १३ भव्यता और अभव्यता का अर्थ मोक्ष-गमन की योग्यता और अयोग्यता से है। प्रश्न हो सकता है कि मोक्ष जाने की योग्यता सब में नहीं होती है क्या? नहीं होती है तो क्यों ?एक ही पर्यावरण में जीने वाला एक व्यक्ति मोक्षगमन की योग्यता रखता है और दूसरा नहीं ।इसका हेतु क्या है ? ___ यह एक निर्हेतुक तथ्य है। इसका कोई कारण नहीं है । चेतना का गुण प्राणी मात्र में होता है, पर उसका सम्पूर्ण विकास कोई-कोई ही कर पाता है। जो प्राणी ऐसा करने की क्षमता रखते हैं, वे भव्य हैं और जिनमें ऐसी क्षमता नहीं होती है, वे अभव्य हैं। ऐसा क्यों होता है ? इस प्रश्न का उत्तर है अनादि पारिणामिक भाव । जो जीव था, वह आज भी जीव है और भविष्य में भी जीव ही रहेगा। यह जीव का अनादि परिणमन है। जो अजीव था, वह अजीव है और अजीव ही रहेगा । यह अजीव का अनादि परिणमन है। इसी प्रकार जो भव्य था, वह भव्य ही रहेगा और अभव्य था, वह अभव्य ही रहेगा। किसी भी प्रयत्न या पुरुषार्थ से अभव्य को भव्य नहीं बनाया जा सकता। अभव्य जीव कभी भव्य नहीं बन सकता और भव्य जीव मोक्ष जाते रहते हैं। इस स्थिति में एक समय ऐसा भी आ सकता है, जब सब भव्य मोक्ष चले जाएं तो संसारी जीवों का वर्ग भव्य-शून्य हो जाए। ऐसा हुआ तो मोक्ष का द्वार बंद हो जायेगा। मोक्ष के अभाव में धर्माराधना का क्या अर्थ होगा? इस प्रश्न के संदर्भ में सामान्यत: इतना ही जान लेना काफी है कि यहां से जितने जीव मुक्त होंगे, वे सभी भव्य ही होंगे। पर संसार में जितने भव्य हैं, वे सभी मुक्त हो जाएंगे, यह संभव नहीं है। क्योंकि जिन भव्य जीवों को वैसी सामग्री उपलब्ध नहीं होगी, वे अपनी योग्यता का उपयोग नहीं कर पाएंगे। पत्थर में प्रतिमा बनने की योग्यता होती है, पर सब पत्थर प्रतिमा का आकार नहीं ले पाते । जिन पाषाण-खण्डों को शिल्पी का योग नहीं मिलेगा, वे योग्य होने पर भी प्रतिमा नहीं बन पाएंगे। इसी प्रकार जिन भव्य जीवों को उपयुक्त वातावरण नहीं मिलेगा, वे कभी मुक्त नहीं हो पाएंगे। फलत: जीव-वर्ग कभी भी भव्य जीवों से शून्य नहीं होगा। त्रस-स्थावर वस का अर्थ है जंगम जीव । जो चलता है, वह जंगम कहलाता है । चलने-फिरने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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