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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग
ग्यारहवां बोल संग्रह
७७०-- भगवान् महावीर के ग्यारह नाम
चौवीसवें तीर्थङ्कर श्रमण भगवान् महावीर के अनेक नोम हैं । कृष्ण नगर, लाहोर से प्रकाशित 'जैनविद्या' नामक त्रैमासिक पत्रिका में पं० वेचरदासजी दोशी का एक लेख प्रकाशित हुआ है । उसमें भगवान् के नामों का शास्त्रों का प्रमाण देकर विवेचन I किया है। उपयोगी जान कर वह यहाँ उद्धृत किया जा रहा है ।
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हमारे जैन समाज में भगवान् महावीर के दो नाम ही प्रायः प्रसिद्ध हैं। एक महावीर दूसरा वर्द्धमान । इनमें भी महावीर नाम अधिक प्रसिद्ध है । प्रस्तुत निबन्ध में प्रभु महावीर के दूसरे नामों की चर्चा की गई है, जो आगम ग्रन्थ और जैनकोशों में मिलते हैं ।
आचाराङ्ग सूत्र में लिखा है- समये भगवं महावीरे कासवगोते । तस्स एं इमे तिरिण यामधेजा एवं प्राहिज्जंति अम्मापिउसंतिए वद्धमाणे । सहसमुदिए समणे । भीमभय भैरवं उरालं प्रचेलयं परीसहं सहइ त्ति कटुदेवो हैं से पामं कयं समणे भगनं महावीरे!” (चौवीसवां अध्ययन - भावना)
श्रमण भगवान् महावीर काश्यप गोत्र के थे । उनके तीन नाम इस प्रकार कहे जाते हैं
(१) वर्धमान - माता पिता ने उनका नाम वद्धमाय-वर्धमान किया था ।
(२) श्रमण -- सहज स्वाभाविक गुण समुदाय के कारण उनका दूसरा नाम समय- श्रमण हुआ ।