Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas Author(s): Shreechand Rampuriya Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Sabha View full book textPage 7
________________ इसलिये जब उन्हें उस वखतके साधु समाजके शिथिलाचारका मालूम पड़ा तो उन्होंने उसका प्रायश्चित्त भी किया। ___यह एक आश्चर्यकी बात है कि उपरोक्त प्रतिज्ञाके बाद ही भीखएजी का बुखार उतर गया। उन्होंने श्रावकोंसे कहा कि उनका कथन युक्ति-युक्त है और साधुवर्गका आचार व प्ररूपणा अशुद्ध है।पर उन्होंने वचन दिया कि आचार्यको समझा कर शुद्ध मार्गकी प्रवृत्तिके लिये चेष्टा करेंगे । इससे श्रावक लोग उन पर विशेष श्रद्धालु बने । उन्होंने सत्यासत्यका निर्णय करनेके लिये फिरसे शास्त्रोंके गम्भीर अध्ययनका विचार किया। और ३२ सूत्रोंको ही दो दो बार खूब अच्छी तरहसे विचार पूर्वक पढ़ा। अब रघुनाथजीका पक्ष शास्त्र सम्मत न होनेमें उन्हें तनिक भी शंका न रही। भिखणजीने जिनोक्त मार्ग अङ्गीकार करनेकी प्रतिज्ञा कर ली थी पर इससे पाठक यह न समझे कि उन्होंने रघुनाथजीके शिष्य न रहने की ठान ली थी अथवा किसी नये मतके आचार्य ही वे बनना चाहते थे। जहां सच्चा मार्ग हो वहां गुरु रूपमें या शिष्य रूपमें रहना उनके लिये समान था । आत्म-कल्यश्णका प्रश्न ही उनके सामने मुख्य था इसलिये शिष्य रह कर भी वे इसे प्राप्त कर सकते तो उन्हें कोई आपत्ति न थी। इसी लिये रघुनाथजीके पक्षको गलत समझ कर भी उन्होंने उसी समय रघुनाथजीसे अपना सम्बन्ध न तोड़ दिया। बल्कि उलटा उन्होंने यह विचार किया कि रघुनाथजीसे शास्त्रीय आलोचना करूंगा और उन्हें और उनके सम्प्रदायको हर प्रकारसे शुद्ध मार्ग पर लानेका प्रयत्न करूंगा। उनसे मिलनेके पहले अपने भविष्यके सम्बन्धमें उन्होंने कोई निश्चय करना उचित न समझा। इस समय भिखणजीने जिस विनय और धीरजका परिचय दिया वह अवश्य ही उनके आन्तरिक वैराग्य और धर्म मावनाओं का प्रतिबिम्ब था। ___ चातुर्मास समाप्त होने पर भिखणजी रघुनाथजीके पास गये और विनम्रता पूर्वक उनसे आलोचना शुरू की। उन्होंने कहा कि हम लोगोंने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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