Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Sabha

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Page 19
________________ ( १८ ) तेरापंथी सम्प्रदाय के इतिहास में बहुत मिलेंगे । जो सब माया मोहाछन मनुष्य दीक्षा को सांसारिक उन्नति के अन्तराय भूत समझते हैं वे जरा गहन विचार करके देखें कि दीक्षा मनुष्य को कितने उच्चस्तर में लेजा सकती है। नवमाचार्य्य एक योग्य गुरुके योग्य शिष्य हैं । असा धारण दूर दृष्टि सम्पन्न अष्टमाचार्य - स्वहस्त दीक्षित, स्वहस्त शिक्षित, स्वहस्त निर्वाचित नवमाचार्यको जिस पद पर स्थापित करने की व्यवस्था कर गये वह आज उनके स्वर्गारोहण के सात वर्षके भीतर ही गुण प्राहकताकी यथेष्ट परिचायक बन सबको मालूम पड़ रही है। वर्तमान श्राचार्यका गुण वर्णन कहां तक किया जाय। वह तो देखने एवं अनुभव करनेका विषय है । श्रपका संस्कृत व्याकरण, काव्य कोष, न्याय आदिका ज्ञान अगाध है । आप एक प्रतिभाशाली अद्वितीय कवि भी हैं। हाल में आपने दीक्षागुरु अष्टमाचार्य की कथामय जीवनी १०६ ढाल - षट् खंडमें रची है। " श्री कालूयशो विलाश” नामक इस - पूर्व प्रन्थकी जो रचना आपने की है वह राजस्थानी भाषा व हिन्दी साहित्यकी एक अनुपम सम्पद है । हम प्रत्येक हिन्दी भाषा भाषी विद्वानों से यही निवेदन करते हैं कि आप लोग इस अनुपम काव्यका सुधा स्वाद करें और देखें कि इतिहास, जीवनी, धर्मतत्व, समाजतत्व, देश वणन आदि आदिका कितना सुन्दर समन्वय इसमें किया गया है। आपकी गुणगाथा श्रवण कर श्रीमान् बीकानेर नरेश महाराजधिराज श्री सादुलसिंहजी महाराजने आपका दर्शन किया एवं लंडन यूनीवर्सिटी के संस्कृत अध्यापक डा० थामसन भी आपके दर्शनार्थ आये । तेरापन्थियोंके सैद्धान्तिक मतबाद श्री जैन श्वेताम्बर तेरापन्थीधर्मके अनुयायी मूर्तिपूजा नहीं करते और न मूर्तिपूजा करना मोक्षका साधन ही मानते हैं। वे तीर्थकरों की भाव पूजा या ध्यान करते हैं। जिन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया है, या जिन्होंने संसार त्यागकर साधु-मार्ग स्वीकार किया है, एवं साध्वाचारका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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