Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
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प्रकट किया था। कौंसिल ऑफ स्टेट के माननीय सदस्य सुखबीरसिंह जी (मुजफ्फरनगर निवासी) ने नाबालिग वेला रजिष्ट्री कानून के विषय में दो बार श्री पूज्यजीके दर्शन किये और तेरापंथी दीक्षा- नीतिको पूर्ण रूप से अनुकरणीय बताया । उदयपुर के महाराणाजी, बावके राणाजी आदि बड़े बड़े नरेश आपके दर्शन कर कृतकृत्य हुए। आप सं० १६६३ भाद्र शुक्ला ६ के दिन गंगापुर में स्वर्गधाम पधारे । नवम आचार्य श्री श्री १००८ श्री तुलसीरामजी महाराज -
आपका जन्म लाडनूंंमें सम्वत् १६७१ मिति कार्तिक शुक्ल २ को हुआ | आपके पिताका नाम भूमरमलजी खटेड़ तथा माताका नाम वदनाजी था । आपकी दीक्षा सम्वत् १६८२ की मिती पौष कृष्ण ५ को हुई। आपको अष्टम आचार्य महोदय ने सम्वत् १६६३ भाद्र शुक्ल ३ के दिन अपना भावी पट्ट घर घोषित किया । बाईस वर्षकी युवावस्था में विशाल संघका भार आप पर पड़ा। परन्तु आप अष्टमाचार्य महोदय के यत्न व चेष्टा असाधारण विद्वत्ता, पांडित्य, वैराग्य एवं त्यागकी प्रतिमूर्ति बन चुके थे । आप सम्बत् २००० की चैत बदी १५ तक ७६ साधु एवं १६६ साध्वियों को दीक्षित कर चुके हैं। विक्रम सम्वत् २००० के अन्त तक आपकी आज्ञा में १७० सन्त व ४२४ सतियांजी मौजूद हैं । सम्वत् १६६४ सालमें आपने स्वहस्त से अपनी जन्मदात्री मातुश्री वदनांजीको दीक्षित कर माताके प्रति सन्तानके वास्तविक कर्तव्य का पालन किया। आपके अप्रज स्वामीजी श्री चम्पालालजीकी दीक्षा सम्वत् १६८१ सालमें हुई। आपकी भगिनी श्री लाडोंजी की दीक्षा आपही के साथ सम्बत् १६८२ में हुई थी। एक ही परिवारके ४ मुमुक्षु जीव इस संसारको असार समझ श्री वीतराग भगवान प्ररूपित शुद्ध संयम मार्ग ग्रहण कर आज जगत के सामने एक ज्वलन्त उदाहरण दिखा रहे हैं। ऐसे एकही परिवारके एकाधिक पीक्षित, पिता पुत्र कन्या, माता पुत्र, पति पत्नी आदि जैन श्वेताम्बर
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