Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
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। ३५ ) तेरापंथी साधुत्रोंकी तपस्याका दिग्दर्शन | तेरापंथी साधु बहुत उग्र तपस्याएँ करते हैं। श्री मुखांजी नामकी एक साध्वीने निरन्तर २६७ दिनोंका उपवास किया था। इस लम्बे उपवासमें उन्होंने उबाली छुई छाछके ऊपरके पानीके अतिरिक्त कोई आहार नहीं लिया। कई साधुओंने केवल जल पर ही १०८ दिन निकाले हैं। एक साध्वी प्राचार्याने २२ दिन बिना अन्न जलके निकाले थे । तेरापन्थी साधुओंका आचार, निष्ठा, संगठन व नियमानुवर्तिता तथा उनके तपस्या मय जीवनको जो देखते हैं, वे सब मुग्ध हो जाते हैं।
तेरापन्थी सम्प्रदायके साधु साध्वियोंमें बहुतसी महत्वपूर्ण तप. स्याएँ हुई हैं। यहां तो दृष्टान्त स्वरूप केवल थोड़ीसी ही तपस्याओंका वर्णन दिया जाता है । रात्रिमें जैन साधु साध्वियों कोई भी चीज नहीं 'खाते यह पहिले कह चुके हैं। उपवासका पारण वे सूर्योदयके बाद ही करते हैं। उपवास करते हुए दिनके समय गरमजल या छाछ के उपरका जल ही ले सकते हैं, और कुछ नहीं।
प्रथम दो आचार्यों के शासनकालमें छः महीने तककी निरन्तर तपस्या नहीं हुई थी। तृतीय श्राचार्य महाराज श्री रायचन्दजीके शासनकाल में पहले पहल छः महीनेका निरन्तर उपवास स्वामी पृथ्वीराजजी महाराजने किया। वे मारवाड़ रियासतके बाजोलिया प्रामके रहनेवाले थे। उनकी दीक्षा सं० १८६६ में महाराज श्री हेमराजजी के हाथसे हुई थी। वे विवाहित थे और स्त्रीको परित्याग कर उन्होंने दीक्षा ली थी। दीक्षाके बाद पहिले छः वर्षों में तो वे बीच बीचमें उपवास किया करते थे। परन्तु सं० १८७३ से प्रत्येक चातु. मासके समय उन्होंने बड़ी-बड़ी तपस्याएँ करनी शुरू की। उनकी तपस्याओं की सूची नीचे दी जाती है:
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