Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
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(४५) अन्य प्रकारकी प्राकृतिक रोशनी या हवाको व्यवहारमें नहीं लाते । सर्दीके समय न तो अग्नि या सिगड़ी घरमें रखते और न अग्नि ताप ही लेते हैं । नदी, कुत्रा, तालावआदिका जल सचित्त सजीव होनेके कारण साधु नहीं ले सकते। हिंसा मूलक कोई भी कार्य करना, कराना व अनुमोदन करना बिलकुल मना है।
(१०) किसी भी सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सांसारिक या कानूनी व्यापारमें साधु भाग नहीं लेते। नैतिक एवं आत्मिक उन्नति. जनक कार्यमें ही वे अपना समय बिताते हैं। यदि कोई मनुष्य, साधुओंको कोई प्रकारका कष्ट पहुँचाता हो तो साधु उसके विरुद्ध या निजकी रक्षाके लिये राज-दरबार, थाना, कचहरी, पुलिसमें इत्तला नहीं देते। स्वयं किसी मामले में साक्षी नहीं दे सकते और न दूसरेसे इस तरहके किसी कार्य में सहयोग ले सकते हैं ।
(११) तेरापंथी साधुओंके कोई मठ, मन्दिर, स्थान आदि नहीं हैं। वे तो गृहस्थों के घरों में उनकी इजाजतसे रहते हैं।
(१२) तेरापंथी साधु साध्वी साधारणतया उच्च कुलके महाजन सम्प्रदायसे ही दीक्षित होते हैं। उन्हें आजीवन प्राचाय्यकी प्राज्ञानुसार चनना पड़ता है। प्रत्येक कनिष्ठ साधुको उनके ज्येष्ठ साधकी भी आज्ञा माननी पड़ती है । कनिष्ठता व ज्येष्ठता उम्रके अनुसार नहीं किन्तु दीक्षा क्रमके अनुसार ही मानी जाती है। (१३) तेरापंथी सम्प्रदाय की दीक्षा प्रणाली:
(क) नव वर्षसे कम उम्र वालों को दीक्षा नहीं दी जाती।
(ख) नव वर्षसे ऊर्द्धवयः के दीक्षार्थी को भी तीन वैराग्य भाव देखकर दीक्षा दी जाती है।
(ग) तीव्र वैराग्य भाव होने परभी जब तक नवतत्त्वका जान पण दीक्षार्थी में नहीं होता तबतक दीक्षा नहीं होती।
(घ) उपरोक्त समस्त बातें होने पर भी दीक्षार्थीकी संयम पालन शक्तिकी जांच कर पीले दीक्षा दी जाती है।
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