Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Sabha

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Page 45
________________ ( ४४ ) उपकरणों से कोई जीवजन्तुकी विराधना न हुई हो । यदि साधु साध्वी किसी भण्डार या गोदाममें पुस्तकादि रखते रहें तो दैनिक पडिलेहना ( निरीक्षण ) नहीं हो सकती एवं यह शिथिलता शास्त्र मर्यादाका उल्लंघन करना है। (५) साधुके लिये परिग्रह रखना मना है। जैन मतानुसार काच भी परिग्रह है । इसलिए तेरापन्थी साधु चश्मा, ऐनक, ( Spectacles) नहीं रखते, अन्यान्य धातु निर्मित वस्तुयोंकी तो बात ही दूर रही । साधुके लिये शास्त्र में वस्त्र विषयमें भी विधि नियम है । साधु सफेद aant ही यथा-परिमाण व्यवहार करते हैं । निर्दिष्ट मूल्य से अधिक मूल्यके वस्त्रादिका दान ग्रहण नहीं करते । अपने लिये कोई खाद्य एवं पानीय वस्तु, वस्त्र, पुस्तक, कागज तैयार नहीं कराते, मोल नहीं स्वरीदाते या अपने यहां लाकर दिया हुआ भी पदार्थ नहीं लेते। (६) तेरापन्थी साधु अपने शिरके केश तथा दाढ़ी मूछें उस्तुरे या कैंची से नहीं उतराते | उन्हें साल में दो बार केशोंका लोच करना पड़ता है । लोचका परीषह कितना कठोर हैं यह पाठक अनुमान से ही समझ सकते हैं। (७) तेरापन्थी साधु जूती, मोजे, स्लिपर, पादुका आदि कुछ नहीं पहिनते । कड़ी गरमी में भी उत्तप्त बालू या पहाड़ी जमीन पर और भयानक शीतके समय ठंडी जमीन पर नंगे पैर ही वे विचरण करते हैं। (८) तेरापन्थी साधु दातव्य औषधालयसे औषध नहीं लाते । कोई श्रद्धालु वैद्य या डाक्टर अपनी दवाइयों में से कोई दवा स्वेच्छा से दान करे तो साधु ले सकते हैं। आवश्यकता होनेसे किसी डाक्टरसे अखादि मांगकर यदि सम्भव हो तो साधु द्वारा ही अस्त्रोपचार कराते हैं। किसी डाक्टर के द्वारा या अस्पताल में जाकर दूसरेसे अस्त्रोपचार नहीं कराते । (६) अहिंसामय जैनधर्मके उपासक तेरापंथी साधु बिजलीका पंखा या हाथ पंखा, बिजलीकी रोशनी, लालटेन की रोशनी या किसी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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