Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Sabha

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Page 22
________________ ( २१ ) नियमोंका पालन करते हैं कि जिससे उनके निमित्तिसे जीव जन्तुओं की हत्पत्ति या विनाश न हो ! ( ७ ) किसीके कठोर बचनोंको सुनकर जैन साधु चुपचाप उसकी उपेक्षा करते हैं और मनमें किसी प्रकारका विचार नहीं लाते, मारे जाने पर भी मनमें द्वेष लाना जैन साधुके लिए मना है । ऐसे अवसर पर पूर्ण सहनशीलता रखना ही साधुका आचार है । इस प्रकार जैन धर्म के सभी नियमों में अहिंसाको स्थान दिया गया है और सच्चे जैन साधु सम्यक् प्रकारसे उसका पालन करते हैं । तेरापंथी साधु इन नियमोंको यथारूप पालते हैं । दूसरों की भांति शिथिलाचारी बनकर व्रत भङ्ग नहीं करते । (२) मृषावाद विरमण व्रत: - इस व्रत के अनुसार साधु प्रतिज्ञा करते हैं कि वह किसी प्रकारका असत्य भाषण नहीं करेंगे। उनकी प्रतिज्ञा होती है कि मैं मन वचन या कायासे न झूठ बोलूंगा, न बुलाऊँगा, न जो बोलेगा उसका अनुमोदन करूँगा । इस प्रकार असत्य भाषणका त्याग कर लेने और सम्पूर्ण सत्य व्रतको अङ्गीकार कर लेने पर भी साधुको बोलते समय बहुत सावधानी और उपयोगसे काम लेना पड़ता है । सत्य होने पर भी साधु सावद्य पापयुक्त कठोर भाषा नहीं बोल सकते। उन्हें सदा असंदिग्ध, अमिश्रित और मृदु भाषा बोलनी पड़ती है । जिस सत्य भाषण से किसीको कष्ट हो या किसी पर विपत्ति आ पड़े वैमा सत्य बोलना भी साधुके लिए मना है । इसलिये कोई भी तेरा पंथी साधु किसीके पक्ष या विरुद्ध साक्षी नहीं दे सकते और न साधु किसी भी हालत में मिथ्याका श्राश्रय ही ले सकते हैं । जहां सत्यवाद साधुके लिये प्रयुक्तिकर हो वहां वे मौन अवलम्बन करते हैं । ( ३ ) अदत्तादान विग्मरण व्रत: - इस व्रत के अनुसार बिना दिये एक तृण भी लेना साधुके लिए महापाप है । साधुको प्रतिज्ञा करनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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