Book Title: Jain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ ( २३ ) है। जिस प्रकार साध स्वयं सूर्यास्तके बाद किसी प्रकारका आहार नहीं करते उसी प्रकार न दूसरोंसे आहार करवाते हैं और न करने वालेका अनुमोदन करते हैं। यह छट्ठा ब्रत अहिंसाव्रतकाहो अंग है। (ख) उपरोक्त छः व्रतोंके अतिरिक्त साधुको निम्नलिखित पांच समितियोंको पालन करना पड़ता है: (१) इर्याः-इस समितिके अनुसार मार्गमें चलते समय साधुको उपयोग पूर्वक आगेका मार्ग देख कर चलना पड़ता है। साधु रातमें मलमूत्रके त्यागको छोड दूसरे कार्यके लिये अछायामें नहीं जा सकते । ढके हुए स्थानमें भी विशेष यन पूर्वक जयनाके साथ चलना पड़ता है। उन्मार्गको छोड़कर सीधे सरल मार्ग पर ही चल सकते हैं। गमनागमन करते समय बहुत उपयोग और संभालपूर्वक गमन करना पड़ता है। जिससे कि सूक्ष्मसे सूक्ष्म प्राणीको भी इजा (कष्ट) न पहुंचे। (२) भाषा-विचारपूर्वक सत्य, सरल, निर्दोष और उपयोगीवचन बोलना, अपने वचनोंसे किसीको कष्ट न पहुँचाना इस समितिका उद्देश्य है। जिस वचनसे अविश्वास उत्पन्न हो, दूसरा शीघ्र कुपित हो, दूसरे का अहित हो वैसी भाषा बोलना साधुके लिए सर्वथा वर्जनीय है। (३) एषणा-इस समितिके अनुसार साधुको श्राहार पानी, वस्त्र, पात्रादि उपकरण तथा पाट बाजोटादि वस्तुएँ लेनेके पूर्व सावधानीसे काम लेना होता है। उनकी भिक्षा करने, उनसे स्वीकार करने तथा उनको उपभोगमें लानेमें संयमको किसी प्रकारसे आपात न पहुँचे इस प्रकार उपयोग या सावधानी रखनी पड़ती है। निदोष तथा परिमित भिक्षा, अल्प कल्पानुसार उपकरण आदि ग्रहण करना इस समितिके भीतर पा जाता है। किसी वस्तुको प्रहण करनेके पूर्व साधुको इस षातकी पूरी खोजकर लेनी पड़ती है कि कहीं साधुको उद्देश करके ही तो वह वस्तु नहीं खरीदी, लायी या बनायी गयी है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56