________________
जैन पूजांजलि
देव दर्शन द्वारा भव्य जीव आत्मानुभूति प्राप्ति कर लेते हैं। सर्व विघ्न बाधा नाशक है सर्व संकटों का हौं । अजर, अमर, अविकल, अविकारी अविनाशी सुख का कर्ता ॥ कर्माष्टक का चक मिटाता, मोक्ष लक्ष्मी का दाता । धर्मचक्र से सिद्धचक्र पाता जो ओम नमः ध्याता ॥ प्रोम शब्द में गमित पांचों परमेष्ठी निज गुण धारी । जो भी ध्याते बन जाते परमात्मा पूर्ण ज्ञान धारी। जय, जय, जयति पंच परमेष्ठी जय, जय, एमोकार जिन मंत्र । भव बन्धन से छुटकारे का यही एक है मंत्र स्वतन्त्र ॥ इसको अनुपम महिमा का शब्दों में कैसे हो वर्णन । जो अनुभव करते हैं वे ही पा लेते हैं मुक्ति गगन ।।
-अर्घजल गंधाक्षत पुष्प सुचरु ले दीप धूप फल अर्घ्य धरू। जिन गृह में जिन प्रतिमा सम्मुख सहस्रनाम को नमन करूं ॥ ॐ ह्रीं भगवत् जिन, सहस्रनामेभ्यो अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा ।
(स्वस्ति मङ्गलम्) मङ्गलमय भगवान् वीर प्रभु मंगलमय गौतम गणधर मंगलमय श्री कुन्द कुन्द मुनि मङ्गल जैन धर्म सुखकर मंगलमय श्री ऋषभदेव प्रभु, मंगलमय श्री अजित जिनेश मंगलमय श्री सम्भव जिनवर, मंगल अभिनन्दन परमेश मंगलमय श्री सुमति जिनोत्तम मंगल पद्मनाथ सर्वेश मंगलमय सुपाश्र्व जिनस्वामी मंगल चन्दा प्रभु चन्द्रेश मंगलमय श्री पुष्पदन्त प्रभु, मंगल शीतलनाथ सुरेश मंगममय श्रेयांसनाथ जिन मंगल वासु पूज्य पूज्यश