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जैन पूजांजलि
साधुजन मोहभाव नष्ट कर ज्ञायक भावमयी निश्चय स्तुति को प्राप्त हैं । मङ्गल चार, चार, हैं उत्तम चार शरण में जाऊ मै । मन, वच, काय, त्रियोगपूर्वक शुद्ध भावना भाऊँ मैं ॥ श्री अरिहंत देव मङ्गल हैं, श्री सिद्ध प्रभु हैं मङ्गल। श्री साधु मुनि मंगल हैं, है केवलि कथित धर्म मंगल ॥ श्री अरिहंत लोक में उत्तम, सिद्ध लोक में है उत्तम । साधु लोक में उत्तम हैं, है केवलि कथित धर्म उत्तम ।। श्री अरिहंत शरण में जाऊँ, सिद्ध शरण में मैं जाऊ । साधु शरण में जाऊं, केवलि कथित धर्म शरणा जाऊं ॥ ॐ नमो अर्हते स्वाहा, पुष्पांजलि क्षिपामि ।
मंगलविधान णमोकार का मन्त्र शाश्वत इसकी महिमा अपरम्पार । पाप ताप संताप क्लेश हर्ता भव भयनाशक सुखकार ॥ सर्व प्रमङ्गल का हर्ता है सर्वश्रेष्ठ है मंत्र पवित्र । पाप पुण्य आश्रव का नाशक संवरमय निर्जरा विचित्र ॥ बन्ध विनाशक मोक्ष प्रकाशक वीतराग पद दाता मित्र । श्री पंचपरमेष्ठी प्रभु के झलक रहे हैं इसमें चित्र ॥ इसके उच्चारण से होता विषय कषायों का परिहार । इसके उच्चारण से होता अन्तर मन निर्मल अविकार ॥ इसके ध्यान मात्र से होता अन्तर द्वन्द्वों का प्रतिकार । इसके ध्यान मात्र से होता वाह्यान्तर प्रानन्द अपार ॥ णमोकार है मन्त्र श्रेष्ठतम सर्व पाप नाशनहारी। सर्व मङ्गलों में पहला मङ्गल पढ़ते ही सुखकारी ॥ यह पवित्र अपवित्र दशा सुस्थिति दुस्थिति में हितकारी। निमिषमात्र में जपते ही होता विलीन पातक भारी॥