Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 119
________________ विकल प्रत्यक्ष ज्ञान की परिमितता। विक्रिया-रूप-परिवर्तन की प्रक्रिया ; देव या नारकीय जीवो के शरीर-निर्माण की विधि | विग्रह-गति-भवान्तर-प्राप्ति के लिए जीव की गति । विचिकित्सा-बुद्धि-भ्रम ; जुगुप्सा ; गुलामी। विजिगीपुकथा-वाद-विवाद ; आखिरी निर्णय तक शास्त्रार्थ करना। विज्ञान-चारित्र ; ज्ञान-वैशिष्ट्य । वितर्क-तर्क की प्रगाढता। वितस्ति-बारह अंगुल के बराबर का माप । चिदारण-क्रिया-दूसरो के दोषो का भंडाफोड । विदिशा-उपदिशा ; विपरीत दिशा ; असंयम । विदेह-देह-मुक्त ; शारीरिक सस्कार से रहित , क्षेत्र-विशेष का नाम-महाविदेह । विद्या-सम्यग्ज्ञान ; मन्त्र ; देवी । विद्याचारण-इच्छित स्थान पर गमनागमन की शक्ति । [ १११ ]

Loading...

Page Navigation
1 ... 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149