Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 144
________________ सुषमा-काल-विशेष , अवसर्पिणी का दूसरा और उत्सर्पिणी का पाँचवाँ आरा; तीन कोटाकोटि सागरोपम का काल। सूक्ष्मकाय-वे जीव, जिनका जल, अग्नि और वायु से प्रतिघात नही होता। सूक्ष्मजीव-वे जीव, जिनका शरीर दूसरे पुद्गलों द्वारा रोका नही जा सकता। सूक्ष्मत्व-इन्द्रियजन्य ज्ञान का विषय न होना , सिद्धों के ___ आठ गुणों में से एक। सूक्ष्मसाम्पराय-साधक की दसवी भूमिका ; जहाँ अतिशय सूक्ष्म कषाय का अस्तित्व रहता है , जहाँ कषायों के समाप्त हो जाने के बाद भी राग या लोभ का सूक्ष्म लव जीवित रहता है। सूक्ष्मसाम्परायचारित्र-सूक्ष्म साम्पराय। देखें-सूक्ष्म सम्पराय। सूत्र -सूक्ष्म अर्थ-सूचक वाक्य । सूरि-आचार्य, दीक्षादाता, आचार का परिपालक एवं शिष्यों के अनुग्रहों में दक्ष । [ १३६ ]

Loading...

Page Navigation
1 ... 142 143 144 145 146 147 148 149