Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 148
________________ स्वलिंग सिद्ध — स्वलिंग में केवल्य - प्राप्ति । स्वसमय - शुद्ध आत्मा में ही अपनत्व का दर्शन । स्वस्तिक -- साथिया, संसार-भ्रमण का बोधक चिन्ह ; चतुर्गति का प्रतीक ; मागलिक चिह्न । स्वाध्याय -- शास्त्र - अध्ययन ; तप का प्रमुख भेद, जीवन का पर्यालोचन एवं आत्मचिन्तन । स्वार्थाधिगम-मति, श्रुत आदि रूप ज्ञान । स्वार्थानुमान - किसी दूसरे के उपदेश के बिना स्वय ही निश्चित साधन से साध्य का ज्ञान करना । [ १४० ]

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