Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 146
________________ स्थविर-वृद्ध मुनि ; धर्म में खिन्न होने वालों को प्रोत्साहन देने वाला। स्थविरकल्प-निर्धारित अनुशासन का परिपालन . गच्छ में रहने वाले मुनियो का अनुष्ठान । स्थापना-निक्षेप-धारणा , किसी पुरुष या पदार्थ के चित्र, प्रतिमा या कल्पित आकार को 'यह वही है। ऐसा मानकर विनय-व्यवहार करना । स्थापनाजिन-जिनेश्वर की प्रतिमा । स्थावर-एक स्थान में रहने वाले जीव । स्थिति-ठहरना , अधर्म द्रव्य का स्वरूप । स्थितिकल्प-आचार्यगुण , शास्त्रोक्त साधु-समाचार में अवस्थित। स्थितिबन्ध-कर्म का अपने स्वभाव में रहना। स्थिरीकरण-मोक्ष-मार्ग में आत्म-स्थिति , धर्म-मार्ग से ___ स्खलित हो जाने पर पुनः मार्गारुढ करना । स्थूल-मोटा , विच्छिन्न किये जाने पर भी वापस सम्बद्ध होने वाला, जैसे दूध पानी आदि । स्थूलकाय-सूक्ष्मकाय से भिन्न जीव ; जो पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु द्वारा रोके जा सके । [ १३८ ]

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