Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 142
________________ निश्चितता, जैसे धुएँ के द्वारा अग्नि सिद्ध करने में रसोई घर का दृष्टान्त । साध्य-लक्ष्य , निष्पन्न होने योग्य ; साधने के लिए शक्य ; वादी को अभीष्ट ; प्रस्ताव का विधेय । सापेक्षता-अपेक्षा-भेद , निर्भरता। सामानिक-देव-विशेष , इन्द्र के समकक्ष देवता । सामान्य-वस्तु के समान परिणाम का नाम , सदैव पाये जाने __ वाले गुण , अनेक व्यक्तियो में भी अभेदता का कारण । सामायिक-समत्वयोग , प्रतिकूल परिस्थितियों में भी स्वयं को उनसे अप्रभावित रखना , निर्धारित समय तक धर्म ध्यान में अवस्थिति। सामायिकचारित्र-समता भाव ; शुभाशुभ संकल्प-विकल्पो का त्याग , समाधि । साम्परायिक-देखें-सम्पराय । सालम्बध्यान-अरिहंत के रूप का चिन्तन ; धर्म-ध्यान ; जिनप्रतिमा का ध्यान । सावद्य-योग-हिंसक कार्यों में बुद्धि का उपयोग ; प्राणीपीडाकारी प्रवृत्ति । [ १३४ ]

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