Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 140
________________ संसृति - ससार देखें - संसार | संस्कार - वासना कर्मासव एवं शरीर धारण की परम्परा । धारणा उत्पन्न एवं अन्य ज्ञान का कारण । स्मृति का आधार ; ज्ञान से संस्तव - स्तुति, विद्यमान या अविद्यमान गुणो की वाणी द्वारा अभिव्यक्ति । संस्तार / संस्तारक - पौषध करने वाले भावक द्वारा बिछाने के लिए उपयोग किये जाने वाले डाभ, जुट, कुश, कम्बल, वस्त्र आदि के विछौने या आसन अथवा लकडी का घाटा । ; संस्थान--- आकार - विशेष अशुभ आकृति की रचना करने वाला संस्थान विचय- धर्म - ध्यान का एक भेद ; अवस्थाओं एवं आकृतियो का चिन्तन | कर्म-विशेष ; शरीर की शुभ या कर्म लोक की विविध संस्वेदज - त्रस का भेद; पसीने से उत्पन्न होने वाले जीव | जैसे लीख, जूँ आदि । संहनन --- हड्डियों की रचना ; अस्थियो की सन्धियों का कारणभूत कर्म । [ १३२ ]

Loading...

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149