Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 141
________________ संहिता-आचार-शास्त्र ; धर्मदेशना; पदों का उच्चारण । साकल्य-वस्तु की अनन्त धर्मात्मकता। सागर सागरोपम-दस कोटाकोटि पल्यो/पल्योपमो के बराबर का एक अवधि-सूचक माप । सागार-अणुव्रतों का परिपालक । सागारधर्म-श्रावक धर्म। साड़ा-साध्वियों के पहनने का चोलपट्टक । सातागौरव-भोजन, शयन आदि में विशेष प्रेम । सातावेदनीय-शारीरिक और मानसिक सुखो का अनुभव करने वाला कम पुण्य । साथिया-स्वस्तिक । देखें-स्वस्तिक । साधक-आत्म-ध्यान में तत्पर ; शास्त्रों का ज्ञाता ; अध्यात्म जीवी; निष्पादक। साधन-विवक्षित पदार्थ की उत्पत्ति का निमित्त ; लिंग; दर्शन, ज्ञान आदि परिणामों का निष्पादन । सार्मिक-धर्म-मार्ग का सहचर ; समान धर्म वाला । साधर्म्य-साधन में निश्चितता , प्रकृति/गुणो की समानता। साधर्म्यदृष्टान्त-साध्य और साधन की व्याप्ति की [ १३३ ]

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