Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 130
________________ श्रीवत्स - वक्षस्थल पर उत्कीर्ण कमलाकार चिह्न | श्रुत - सुना हुआ; वीतराग प्रवर्तित तत्त्व-दर्शन, शास्त्र, ज्ञान का एक भेद - श्रुतज्ञान । श्रुतकेवली - आत्मज्ञानी, श्रुतज्ञान की समग्रता का सवाहक । श्रुतज्ञान - परोक्ष ज्ञान ; मन व इन्द्रियों की सहायता से होने वाला ज्ञान ; अर्थ से अर्थान्तर का ग्रहण, जैसे धुआँ देखकर अग्नि को जानना । श्रुतस्थविर - स्थानाग एव समवायाग आगम का वेत्ता । श्रेणि- आकाश-प्रदेशो की पक्ति । श्रेष्ठी - नगर - प्रतिष्ठित धनवान् व्यक्ति ; नागरिको में श्रेष्ठ । [ १२२ ]

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