Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 132
________________ स सकलादेश - एक गुण की अपेक्षा से समस्त वस्तु पर विचार | सकलेन्द्रिय-पंचेन्द्रिय जीव; पूर्ण इन्द्रिय-सम्पन्न जीव । संकर- अयोग्य और असंयमी जनो से मिश्रण । संकोच - सिमटना, छोटे अधिकरण में भी बडे द्रव्य का अपनी परिपूर्णता से ममायोजन । संक्रमण - परिवर्तन, एक प्रकृति का अन्य प्रकृति में प्रवेश । संक्लेश - आर्त और रौद्र ध्यान रूप परिणाम | संखड़ी - प्राणियो की आयु खण्डित करने वाली प्रकरण - क्रिया । सख्यात - संख्येय; वह संख्या, जो पाँच इन्द्रियों की विषय वन मकती हो । 1 संख्या - प्ररूपणा - परिमाण का कथन । संग्रह - नय - विशेष प्रत्येक जाति के अनेक द्रव्यो में जाति की अपेक्षा एकत्व की दृष्टि परिग्रह । } संघ - समूह, श्रावक-श्राविका एवं साधु-साध्वी की सामूहिक व्यवस्था, गुणो का समुदाय, गणो का समूह । [ १२४ ]

Loading...

Page Navigation
1 ... 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149