Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 137
________________ सम्यक्त्व मोहनीय - जिसके उदय से आप्त, आगम और पदार्थों के प्रति श्रद्धा में शिथिलता आती है । सम्यक्त्व - वेदनीय - देखें - सम्यक्त्व मोहनीय | सम्यक् श्रुत - जिनेश्वर द्वारा प्रशप्त शास्त्र । सम्यग्ज्ञान - पदार्थों का अधिगम ; यथार्थ ज्ञान । सम्यग्दर्शन - तत्त्वश्रद्धान; आत्म- रुचि ; देव, गुरु, धर्म के प्रति निष्ठा । देखें - सम्यक्त्व | सम्यग्दृष्टि - सत्यनिष्ठ; तत्त्व पर श्रद्धा रखने वाला जीव ; विवेकी । संयत - संयती पुरुष । संयतासंयत- अणुव्रतो का पालन ; स्थूल पापो से निवृत्ति । संयम - मन, वचन, काया का नियन्त्रण ; इन्द्रिय-जय एवं कषाय- निग्रह | - संयोजना- भोजन - दोष ; विरुद्ध भोजन-पानी का मिश्रण | संयोग केवली - अहं व अवस्था साधक की तेरहवी भूमि, जहाँ केवलज्ञान हो जाने पर भी देह शेष रहने से प्रवृत्ति बनी रहती है । संरम्भ- हिंसा का संकल्प ; प्रमाद । [ १२६ ]

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