Book Title: Jain Paribhashika Shabdakosha
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 128
________________ शिक्षाव्रत - श्रमण-धर्म के अभ्यास में हेतु रूप सामायिक आदि चार व्रत । शिव - स्वस्तिकर अविनश्वर मुक्ति-पद । शिष्टि - गण को शिक्षा । शीत - परीषह - शीत लहर का कष्ट को सहन करना । शील - सदाचार ; ब्रह्मचर्य व्रतों की रक्षा | " शीलव्रत - श्रावक के पॉच अणुव्रतों के रक्षक तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत । शुक्ललेश्या - मन, वचन, काया की निश्छल निर्मल प्रवृत्ति, कदाग्रह-मुक्ति | शुचि - मनोशुद्धि ; पवित्रता । शुद्ध - शुभाशुभ भाव-धारा से मुक्त, पवित्रता । शुद्धोपयोग - शुभाशुभ भावों से निरपेक्ष आत्मा के शुद्ध स्वभाव में अवस्थिति ; साम्यभाव । शून्यवर्गणा - परमाणु-रहित वर्गणा । शैक्ष - श्रुतज्ञान एवं व्रत- भावना में तत्पर साधु । [ १२० ]

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