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कतिपय ग्रन्थकारो का समय निर्णय ] [ ३०१
एक और श्रीनदि का उल्लेख स्व० पडित जुगलकिशोर जी मुख्तार ने वसुन दि के समय का निर्णय करते हुए रत्नकरण्ड -श्रावकाचार की प्रस्तावना पृ०७४ मे किया है वहा लिखा है .
"श्रीनदि को दिये हए कुछ दानो का उल्लेख गुडिगेरि के टूटे हुए एक कनडी शिलालेख में पाया जाता है जो वि० स० ११३३ का लिखा हुआ है। इससे मालूम होता है कि श्रीनदि वि० सं० ११३३ मे भी मौजूद थे। ऐसी हालत मे आपके प्रशिष्य नेमिचन्द्र के शिष्य वसुनदि का समय विक्रम की १२ वीं शताब्दी का प्रायः अन्तिम भाग और सभवत्त, १३ वी शताब्दी का प्रारम्भिक भाग भी अनुमान किया जा सकता है ।"
इस तरह अब तक के अन्वेषण के अनुसार १२ वी शताब्दी का दूसरा चरण और १३ वी का प्रथम चरण दोनो ही समय वसुनदि के हो सकते है।
प्रभाचन्द्र ने रत्नकरड टीका पृ० ८० मे "पडिगहमुच्चठाण" गाथा दी है। यह गाथा वसनदि श्रावकाचार मे २२५वे नम्बर पर है परन्तु दोनो गाथाओ का चौथा चरण भिन्न है इससे ऐसा आभास होता है कि इस प्राचीन गाथा का चौथा चरण वदल कर वसुनदि ने इसे अपनी बना ली है। प्रभाचन्द्र ने इसे अन्यत्र से ली है।
वसुनदि के नाम से श्रावकाचार के अतिरिक्त मूलाचार पर आचारवृति भी पाई जाती है। कुछ विद्वान दोनो रचनाओ को एक ही वसुनदि की कृति मानते हैं पर मैं इससे सहमत नहीं हूँ मैं उक्त दोनो रचनाओ को वसुचदि नाम के दो भिन्न-भिन्न