Book Title: Jain Nibandh Ratnavali 02
Author(s): Milapchand Katariya
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

View full book text
Previous | Next

Page 677
________________ पं० जौहरीलालजी रचित ..... ] [ ६७६ तीर्थंकरो का स्थान क्रमश पुष्कलावती, बम, वत्स और नलिनावती (दिगम्बर ग्रन्थो मे इसकी जगह सरित् नाम लिखा मिलता है) इन ४ देशो में बताया है। इन्ही ४ देशो की ४ राजधानियो के नाम क्रमश पुण्डरीकिणी, विजया, सुसीमा और वीतशोका है जो इस लेख मे ऊपर लिखी गई है। ये चारो नगरियें और चारो देश पूर्व-पश्चिम विदेह मे सीता के उत्तरदक्षिण तट और सीतोदा के दक्षिण-उत्तर तट पर देवारण्य व मूतारण्य की वेदी के पास के स्थानो पर है। 1 इस प्रकार प० जौहरीलालजी कृत विद्यमानविंशति तीर्थकर पूजा मे तीर्थंकरो की जन्मनगरियो के जो स्थान बताये गये हैं वे स्थान चाहे जौहरीलालजी ने खुदने कल्पना करके लिखे हो या उनसे पूर्व के किसी अन्य ग्रन्थकार ने लिखे हो, यह तो निश्चित है कि उनका ऐसा लिखना पूर्वाचार्यों के ग्रन्थो से मेल नही खाता है। . अत वह उपेक्षा के योग्य है। हा अगर स्थान क्रमकी अपेक्षा से तीर्थंकरो के नामो का क्रम माना 'जावे यानी पहिले स्थान मे पहिला तीर्थंकर दूसरे स्थान में दूसरी तयंकर इस तरह सीमन्धरादिको का क्रमबार होना माना जावे तो पूजा मे लिखी उनकी जन्मनगरियों के नाम गलत मानने पडेंगे। चाहे पूजा मे लिखे नगरियो के स्थान गलत हो या नगरियो के नाम गलत हो, दोनो में एक गलत जरूर है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685