Book Title: Jain Nibandh Ratnavali 02
Author(s): Milapchand Katariya
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 680
________________ ६८२ ] पृष्ठ पक्ति १३० १३० १३० १३१ १३२ ६ १३६ २३ ૧૪૩ प्रारम्भ १६० ११ १६६ १५ १६७ १६७ १६८ १७२ १७३ १७३ २१२ २१७ २५६ २७३ २७७ ३२० १६ १७ १८ al १५ १४ ३ mr ४ टिप्पण १ ७ १६ ६ टिप्पणी टिप्पणी [ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ अशुद्ध शुद्ध गृहस्थे के गृहस्थ के क्रियामो क्रियाकों स्यदत श्रवकी क दोघ जैनधर्म नहति भुजयेत् यदि देवी को जिनच द्रादि किन अकुरा इन्द्रनदी के भावसेन ने लेखों से भवन मे बनने का हितषिणा अन्न मे पउम चरिय तीनों पक्तिया 5 स्यादतः 1 श्रावकों क्व दोघं जैनधर्म मे नहनि भुजेच्चेत् आदि देवी जिनचन्द्रादि कि अंकुरा इन्द्रनंदी इनके जवसेन के लेखन से भव वन में बनाने का हितैषिणा अन्त मे पउम चरिय में X 5 अमर कोष कांड ३ वर्ग १ एलो० ३६ "नग्नो 11 मे नग्न वासा दिगबर आदमी के ३ नाम दिये हैं ये नाम बहरे गुगे तिरस्कृत

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