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१३०
१३०
१३०
१३१
१३२
६
१३६
२३
૧૪૩ प्रारम्भ
१६०
११
१६६
१५
१६७
१६७
१६८
१७२
१७३
१७३
२१२
२१७
२५६
२७३
२७७
३२०
१६
१७
१८
al
१५
१४
३
mr
४
टिप्पण १
७
१६
६
टिप्पणी
टिप्पणी
[ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २
अशुद्ध
शुद्ध
गृहस्थे के
गृहस्थ के क्रियामो
क्रियाकों
स्यदत
श्रवकी
क
दोघ
जैनधर्म
नहति भुजयेत्
यदि देवी को
जिनच द्रादि
किन अकुरा
इन्द्रनदी के
भावसेन ने
लेखों से
भवन मे
बनने का
हितषिणा
अन्न मे
पउम चरिय
तीनों पक्तिया
5
स्यादतः
1
श्रावकों
क्व
दोघं
जैनधर्म मे
नहनि भुजेच्चेत्
आदि देवी
जिनचन्द्रादि
कि अंकुरा
इन्द्रनंदी इनके
जवसेन के
लेखन से
भव वन में
बनाने का
हितैषिणा
अन्त मे
पउम चरिय में
X
5
अमर कोष कांड ३ वर्ग १ एलो० ३६ "नग्नो
11 मे नग्न
वासा दिगबर
आदमी के ३ नाम दिये हैं ये
नाम बहरे गुगे तिरस्कृत