Book Title: Jain Nibandh Ratnavali 02
Author(s): Milapchand Katariya
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 675
________________ प० जोहरीलालजी रचित ......... [ ६७७ मेरु पूर्व मे सीता नदीका उत्तर दक्षिणतट और पश्चिम मेसीतोदा का दक्षिण-उत्तर तट ये कुछ ४ स्थान विदेह मे माने जाते हैं । इनका क्रम ऐसा है कि-सीता के उत्तर तट का पहिला स्थान, सीता के दक्षिण तट का दूसरा स्थान, सीतोदा के दक्षिण तट का तीसरा स्थान और सितोदा के उत्तर तट का चौथा स्थान ऐसे मेरु के प्रदिक्षणा रूप से चार स्थान शास्त्रो मे विदेह के माने हैं । प्रत्येक स्थान में इस वक्त एक-एक तीर्थंकर मौजूद हैं। प्रत्येक स्थान मे आठ-आठ देश होते हैं और प्रत्येक देश से एक-एक राजधानी नगरी होती है । प्रत्येक स्थान के ८ देशो की नगरियो मे से किसी एक नगरी मे विद्यमान वीस तीर्थंकरो मे से किसी एक तीर्थंकरो का जन्म हुआ है । १० जोहरीलालजी ने या उनसे पूर्व और किसी कवि ने यह समझ लिया है कि जिस क्रम से विदेह मे ४ स्थानो की स्थिति है उसी क्रम से उनमे सीमधरादि तीर्थंकरो की नाम क्रम से जन्म- नगरियें हुई हैं । पहिला तीर्थंकर प्रथम स्थान की नगरियो मे से किसी एक ( पुण्डरीकिणी मे) हुआ तो दूसरा तीर्थंकर दूसरे स्थान की नगरियो मे ओर तीसरा तीसरे स्थान की नगरियो मे व चौथा चौथे स्थान की नगरियो मे होना चाहिऐ। इसी समझ के अनुसार उन्होने पूजा मे दूसरे तीर्थंकर युग्मधर की जन्म नगरी विजया की दूसरे स्थान सीता के दक्षिण तट पर लिख दी है और तीसरे तीर्थंकर बाहू की जन्म-नगरी सुसीमा को तीसरे स्थान सीतोदा के दक्षिण तट पर लिखी है । इस प्रकार उन्होने ऐसा लिखकर तीर्थंकरो और उनकी जन्मनगरियो का स्थान क्रम तो बैठा दिया किन्तु ऐसा पूर्वाचार्यों के प्रतिकूल पड़ेगा यह ख्याल उनको नही आया । अयोध्या को

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