Book Title: Jain Nibandh Ratnavali 02
Author(s): Milapchand Katariya
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 673
________________ प जोहरीलालजी रचित"""" ] [ ૬૭૬ लालजी ने जो अपनी पूजा में इनके जन्म नगरियो का स्थान निर्देश किया है वह तो त्रिलोकसार आदि मान्य ग्रन्थो मे वैसा लिखा नही मिलता है। जैसे कि उन्होने दूसरे युग्मन्धर तीर्थंकर की जन्मनगरी विजया को सुदर्शन मेरु के पूर्व विदेह मे सीता नदी के दक्षिण तट पर बताई है। किन्तु त्रिलोकसार मे उक्त विदेह की सीता नदी के दक्षिण तट पर वी ८ राजधानी नगरियो के जो नाम लिखे है उनमे विजया नाम की कोई नगरी ही नही है । जैसा कि उसकी निम्न गाथा से प्रगट है- '' ' 'सुसीमा । कुण्डला चेवापराजिद पहंकरा । का पद्मावदी चेव सुभा रयणसंचया ॥७१३॥ ' ' ' अर्थ - सुमीमा कुण्डला, अपराकिता, प्रभकरा, मका, पद्मावती, शुभा और रत्नसम्बया । ये ८ नगरियें पूर्व विदेह की सीता नदी के दक्षिण तटपर हैं। in इनमे विजया नाम की कोई नगरी नहीं है। यह नगरी तो त्रिलोकसार मे पश्चिम, विदेह की सीतादा नदी के उत्तर तटकी नगरियो मे बताई है। । । इसी तरह जोहरीलालजी ने पूजा में तीसरे बाहु तीर्थकर को जन्म नगरी का नाम सुसीमा लिखा है और उसे पश्चिम विदेह मे सीतोदा के दक्षिण तट पर बतायी है। यह नाम भी त्रिलोकसार मे उक्त स्थान की नगरियो मे नही है । जैसे अस्सपुरी सोहपुरी महापुरी तह य होदि बिजयपुरी । if अस्या बिरया चेवय असोगया वीदसोगा य ॥७१४॥ F- अर्थ अश्वपुरी, सिंहपुरी, महापुरी, विजयपुरी, अरजा, विरजा, अशोका और वोत्तशोका । ये ८ नगरिये पश्चिम विदेह मे सीतोहानदी के दक्षिण तट पर जाननी ।

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