Book Title: Jain Nibandh Ratnavali 02
Author(s): Milapchand Katariya
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 663
________________ पूज्यापूज्य-विवेक और प्रतिष्ठापाठ ] [ ६६५ पूजा का विधान मन्मान की दृष्टि से ही किया है, नमस्कारपूज्यत्व बुद्धि से नही। यदि उनका ऐसा उद्देश्य नहीं होता, वे उन देवो और सत्यासियो का सन्मान करने को क्यो लिखते? क्या वे उनको पूज्य समझते थे? कदापि नहीं । सागार धर्मामृत मे उन्होने साफ लिखा है कि दार्शनिक श्रावक आपत्काल मे भी शासन देवो की आराधना नही करता।" समीक्षा व्रत कथा कोश में मुकूट सप्तमी व्रत की विधि मे श्रुतसागर ने और व्रत तिथि निर्णय ग्रन्थ [पृ० १६०-२३१] मे सिंहनन्दि ने जिनप्रतिमा के गले मे फूलो की माला पहिनाना और प्रतिमा के सिर पर फूलो का मुकुट बाधना लिखा है। आप बताये यह सरागियो की पूजा है या वीतरागियो की ? ओर इनमे आपकी पूज्यत्व बुद्धि है या नही ? आपके कथन से श्रुतसागर-सिंहनन्दि का कथन विरुद्ध है अत बतायें किनका कथन ठीक है ? और क्यो ? दिग्पाल, नवग्रह, यक्षयक्षिणियाँ आदि जब आपके मत से भी स रागो है तो फिर इनकी मूर्तियां क्यो बनाई (प्रतिष्ठित कराई) जाती हैं और क्यो उनकी अष्ट द्रव्यो से पूजा की जाती है । क्या यह सरागी पूजा नही है ? और जब यह सरागी है तो अष्ट द्रव्यो से उनकी चरण पूजा भी क्यो की जाती है ? आप तो सरागियो की चरण-पूजा नही बताते मुख-पूजा बताते हैं तो फिर अष्ट द्रव्यो से इनकी मुख-पूजा क्यो नही करते ? क्यो चरण पूजा करते हैं ? इस तरह आपके कथन और क्रिया में परस्पर विरोध है आपने जो यह लिखा कि-"वीतरागियो

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