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पूज्यापज्य-विवेक और प्रतिष्ठापाठ
जैन सदेश अंक (१ फरवरी ६८) में हमारा लेख न०३ "सम्पादक जैन-दर्शन और प्रतिष्ठापाठ" शीर्षक से प्रकाशित हुआ था उसका सम्पादक- जैन दर्शन ने फिर कोई जवाब नहीं दिया किन्तु अभी १३-५-६८ के जैन दर्शन मे एक लेख "क्या नमस्कार पूजा समान है" प्रकाशित हुआ है, जिस पर किसी का नाम नहीं दिया हुआ है फिर भी प्रकारान्तर से वह चांदमल जी चूडीवाल का सिद्ध है, लेख चाहे किसी का हो नीचे उस पर समीक्षा पूर्वक विचार किया जाता है -
(१) लेख के प्रारम्भ मे ध्यर्थ की भूमिका बांधते हुए लिखा है
, “नमस्कार पूजा मे बडा अन्तर है, नमस्कार पूज्य पुरुपो को ही किया जाता है किन्तु पूजा यथा योग्य हर एक की जड पदार्थ तक की भी की जा सकती है इसी से शास्त्रो मे यथायोग्य देवादिको की पूजा (सत्कार) करने का उल्लेख है। यथायोग्य सवका आदर सत्कार किये बिना लोक व्यवहार ही नष्ट हो जाता है । पूजा शब्द का अर्थ सत्कार करना है, सो सत्कार, नमस्कार पूर्वक तो पूज्य-पुरुषो का ही किया जाता है, अन्य का नमस्कार पूर्वक सत्कार नही किया जाता किन्तु बिना नमस्कार