Book Title: Jain Kriya Kosh
Author(s): Daulatram Pandit
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 10
________________ जैन-क्रियाकोष। कहो 'अणत्यमिय' शब्द जु अर्थ निसिभोजन सम नाहिं अनर्थ बंसण गण चरित्र जू तीन ए त्रेपन किरिया गिणि लीन । प्रथमहिं आठ मूलगुण कहो, गुण परसाद विषाद न कहो।। मद्य मास मधु मोटे पाप, इन करि पावे अतुलित पाप ।। बर पीपर पाकर नहिं लीन, ऊमर और कठूमर हीन । तीन पाच ए माठोवस्तु, इनको त्यागे सकल परशस्त । मन-बच-काय तजौ नरनारि, कृत-कारित अनुमोद विचारी। जिनमें इनको दोष जु लौ, तिन वस्तुनतें वुधजन भगे॥ अमल जाति सवही नहिं भक्ष, लगे मक्षको दोष प्रत्यक्ष । रस चलितादिक सड़िय जु वस्तु, ते सब मदिरा तुल्यउ वस्तु ।। जा खाये मन ठीक न रहै, सो सब मदिरा दृषण लहै। अर्क अनेक भातिके जेह, खहवेमें आवत है तेह ॥ आली १ वस्तु रहै दिन धना, तामें दोष लगे मदतना २ । सब सुनि मामिष ३ दीप जु भया, चर्मादिक धृत तेल न लया। हींग कदापि न खावन बुधा, बींधौ सीधौ भखिवौ मुधा। चून चालियौ चलनी चाम, नीच जाति पीस्यौहुन काम ॥८॥ फूली आयो धान अखान, फूल्यो साग तजौ मतिवान । कंद अथाणा माखन त्याग, हाट मिठाई तज बड़ भाग॥ निसि भोजन अणछाण्यूनीर, आमिष तुल्य गिर्ने बरबीर । निसि पीस्यौ निसि राध्यौ होय, हाड चामको परस्यौ जोय ॥ मास महारीके घर तनो, सो सब मास समानहिं गिनो। विकलत्रय भर तिर नर जेह, तिनको मास रुधिरमय नह ।। १गीली । २ मदिराका । ३ मांस ।

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