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चित्रांकन एवं काष्ठ-शिल्प
[भाग 1
के चित्रण की प्रेरणा स्पष्टतः पालकालीन बौद्ध पाण्डुलिपियों के चित्रों से ली गयी है। ये बौद्ध पाण्डुलिपियाँ पालवंशीय शासक रामपाल के शासनकाल में संभवतः ग्यारहवीं शताब्दी के उत्तरार्घ या बारहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध की चित्रित हैं। इन विद्यादेवियों की पटलियों के दिलहों में से एक दिलहे में दो उपासिकाएँ चित्रित हैं। ये उपासिकाएँ इन पटलियों के काल-निर्धारण के लिए महत्त्वपूर्ण संकेत उपलब्ध करती हैं। इन पटलियों की रचना प्रसिद्ध जैन विद्वान जिनदत्त-सूरि के जीवनकाल में हुई है। उनका निधन सन १९५४ में हआ था। दूसरी पटली में भी बिलकूल ऐसी ही उपासिकाएँ चित्रित हैं। यह पटली (रंगीन चित्र २२) जैसलमेर के जैन भण्डार में है। यह पटली प्रायः निश्चित रूप से उस अवसर पर चित्रित की गयी जब जिनदत्त-सूरि मारवाड़ के मरुकोट्टा (मारोठ) नामक स्थान पर एक विशाल मंदिर की प्रतिष्ठापना के लिए पधारे थे। इस मंदिर का निर्माण जिनदत्तसूरि के धर्मोपदेशों की प्रेरणा पर हुआ था अतः इस मंदिर में प्रतिमा-प्रतिष्ठापना करने के लिए उन्हें पधारना ही था। जिनदत्त-सूरि श्याम वर्ण के थे और वे अपने वर्ण के लिए जाने जाते थे, इसलिए इस पटली में उन्हें भूरे त्वचा-रंग में चित्रित किया गया है । इस चित्र में उन्हें अपने शिष्य जिनरक्षित, तीन श्रावकों (नये शिष्यों) तथा इनमें से एक श्रावक की दो पत्नियों को महावीर के जीवन से संबंधित उपदेश देते हुए दर्शाया गया है । पटली2 के मध्य में महावीर आसन पर विराजमान हैं और उनकी दाहिनी ओर जिनदत्त-सूरि को अपने शिष्यों-गुणचंद्र-सूरि और सोमचंद्र-सूरि-को देते हुए पुनः दर्शाया गया है । यह पटली ओघ-नियुक्ति की पाण्डुलिपि का आवरण है । प्रोध-नियुक्ति जैन साधुओं के लिए एक आचार-संहिता ग्रंथ है। यह पटली इस ग्रंथ या किसी अन्य ग्रंथ के साथ निश्चय ही जिनदत्त-सूरि को उनके किसी अनुयायी द्वारा महावीर की प्रतिमा-प्रतिष्ठापना के अवसर पर भेंटस्वरूप प्रदान की गयी होगी। संभवतः इसका दान-दाता वही श्रावक है जिसे अपनी दो पत्नियों सहित पटली पर दर्शाया गया है। क्योंकि इस पटली को हम सुविधा की दृष्टि से एक सुप्रसिद्ध जैन आचार्य के समकालीन चित्रित मान सकते हैं, अतः इसका उचित काल-निर्धारण किया जा सकता है। जिनदत्त-सूरि राजस्थान के निवासी थे, जिनका जन्म सन् १०७५ में तथा निधन ११५४ में हा। इस पटली पर लिखे गये शीर्षकों से यह भी संकेत मिलता है कि इसपर चित्रण किन व्यक्तियों के हैं। जिनदत्त-सूरि सन् ११२२ में प्राचार्य बने और यह पटली इसके बाद ही चित्रित की गयी होगी; अतः इसका रचनाकाल सन् ११२२ से ११५४ के मध्य रहा है । इस पटली के पृष्ठ-भाग पर मात्र पत्र-पुष्पों का अलंकरण है । इस पटली की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसपर एक श्रावक की दो पत्नियों को चित्रित किया गया है। इन दोनों महिलाओं के चित्रों में बाघ-अजंता के नारी-चित्रों के आकार और मुखाकृति के चित्रण की विशिष्ट परंपरा का निर्वाह हुन्मा है, यद्यपि इनके
1 मुनि पुण्यविजय एवं डॉ. उमाकांत प्रेमानंद शाह. सम पेण्टेड बुक-कवर्स फ्रॉम वेस्टर्न इण्डिया,' जर्नल प्रॉफ़
इण्डियन सोसाइटी पॉफ़ पोरिएण्टल पार्ट (स्पेशल नंबर ऑन वेस्टर्न इण्डियन पार्ट), मार्च 1966. Y 34-44 एवं चित्र 25 एवं 27 के अनुसार, डॉ. शाह द्वारा हाल ही में इन विद्यादेवियों के लिए सुझाया गया इससे पूर्व
का, अर्थात् दसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से पूर्व का काल सहज स्वीकार्य नहीं है.. 2 मोतीचंद्र, पूर्वोक्त, रेखाचित्र 191 में समूची पटली को एक रंग में प्रस्तुत किया गया है.
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