Book Title: Jain Jivan Author(s): Dhanrajmuni Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra View full book textPage 5
________________ : क : प्रकाशकीय , श्रीजैन श्वेताम्बर तेरापंथशासनमें सरसेका नौलखा परिवारसंभूत- साढे बारह वर्षके वयमें अष्टमाचार्य श्रीकालूगणी के वरदहस्त से दीक्षित श्रीधनराजजी स्वामी एक असाधारण विद्वत्ताके अधिकारी हैं । बम्बई - पञ्जाब आदि प्रान्तों में विचरकर उन्होंने जो अभिज्ञता प्राप्त की, वह बेजोड़ है । आपकी आचारकुशलता सर्वजनविदित है । आपकी व्याख्यानशैली सरल, सुबोध्य एवं हृदयग्राही है। आप सरलभाषा में दार्शनिकतत्त्वको साधारण जनके बोधगम्य बनानेकी क्षमता रखते हैं। संस्कृत, गुजराती, हिन्दी आदि भाषाओं में आपने अनेक पुस्तके रचकरके जैनके गूढ़तत्त्वोंको समझानेका सफल - प्रयास किया है | आपके अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके और अनेक अप्रकाशित भी हैं। वर्तमान जैन - जीवन ग्रन्थ पहले पञ्जावसे प्रकाशित हुआ था । उसे देखनेका सौभाग्य मिला । उसमें जैनोंके ऐतिहासिक जीवनप्रसङ्ग हरएक समझ सके ऐसे ढग से वर्णित हैं । जनताके लिए विशेष उपकारक लगतेसे आवश्यक सशोधनके साथ उक्त ग्रन्थका पुन. प्रकाशन किया जा रहा है । मैं श्राशा करता हूँ कि पाठकगण इसे पढ़कर अपने जीवनको पवित्र एव उन्नत बनाकर मेरे प्रयासको सफल करेंगे, अस्तु ! भोमराज बोधराPage Navigation
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