Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 24
________________ । ३४६ जैनहितैषी . [भाग १३ समय मनुष्य पशु बना हुआ था, अब वह पशुसे [५] भी बढ़ गया था। ___ संसार एक रणक्षेत्र है। इस मैदानमें उसी ___ इस नोच खसोटमें लोगोंको बादशाही सेनाके सेनापतिको विजयलाभ होता है जो अवसरको सेनापति वलीबहादुर खाँकी लाश दिखाई दी। पहचानता है । वह अवसर देखकर जितने उसके निकट उसका घोड़ा खड़ा हुआ अपनी उत्साहसे आगे बढ़ता है, उतने ही उत्साहसे दुमसे मक्खियाँ उड़ा रहा था। राजाको घोड़ोंका आपत्ति के समय पर पीछे हट जाता है। वह शौक था। देखते ही वह उस पर मोहित हो वीर पुरुष राष्ट्रका निर्माता होता है, और इतिगया। यह एराकी जातिका अति सुन्दर घोड़ा हास उसके नाम पर यशके फूलोंकी वर्षा था । एक एक अंग साँचमें ढला हुआ, सिंहकी करता है। सी छाती, चीतेकी सी कमर, उसका यह प्रेम पर इस मैदानमें कभी कभी ऐसे सिपाही भी और स्वामिभक्ति देखकर लोगोंको बड़ा कौतूहल आ जाते हैं जो अवसर पर कदम बढ़ाना हुआ । राजाने हुक्म दिया-“खबरदार ! इस जानते हैं, लेकिन संकटमें पीछे हटना नहीं प्रेमी पर कोई हथियार न चलाये, इसे जीता जानते। यह रणधीर पुरुष विजयको नातक पकड़ ले, यह मेरे अस्तबलकी शोभाको बढ़ा- भेंट कर देता है । वह अपनी सेनाका नाम मिटा वेगा । जो इसे मेरे पास लावेगा-उसे धनसे देगा, किन्तु जहाँ एक बार पहुँच गया है, निहाल कर दूंगा।" वहाँसे कदम पीछे न हटायेगा । उनमें कोई योद्धागण चारों ओरसे लपके, परन्तु किसीको विरला ही संसारक्षेत्रमें विजय प्राप्त करता है, साहस न होता था कि उसके निकट जा सके। किन्तु प्रायः उसकी हार विजयसे भी गौरवात्मक कोई चम्कारता था, कोई फन्देसे फँसानेकी होती है । अगर वह अनुभवशील सेनापति फिक्रमें था। पर कोई उपाय सफल न होता राष्ट्रोंकी नीव डालता है, तो यह आन पर जान था। वहाँ सिपाहियोंका एक मेला सा लगा देनेवाला, यह मुँह न मोड़नेवाला सिपाही, हुआ था। राष्ट्रके भावोंको उच्च करता है, और उसके हृदय तब सारन्धा अपने खेमेंसे निकली और निर्भय पर नैतिक गौरवको अंकित कर देता है। उसे होकर घोड़ेके पास चली गई। उसकी आँखोंमें इस कार्यक्षेत्रमें चाहे सफलता न हो, किन्तु जब प्रेमका प्रकाश था, छलका नहीं । घोड़ेने सिर किसी वाक्य या सभामें उसका नाम जबान झुका दिया । रानीने उसकी गर्दन पर हाथ पर आ जाता है, तो श्रोतागण एक स्वरसे उसके रक्खा, और वह उसकी पीठ मुहलाने लगी । कीर्तिगौरवको प्रतिध्वनित कर देते हैं। सारन्धा घोड़ेने उसके अञ्चलमें मुँह छिपा लिया । रानी इन्हीं ' आन पर जान देनेवालों ' में थी। उसकी रास पकड़ कर खेमेकी ओर चली । शहजादा मुहीउद्दीन चम्बलके किनारेसे आगघोड़ा इस तरह चुपचाप उसके पीछे चला, मानों रेकी ओर चला तो सौभाग्य उसके सिर पर सदैवसे उसका सेवक है। मोर्छल हिलाता था । जब वह आगरे पहुँचा तो ___ पर बहुत अच्छा होता कि घोड़ेने सारन्धासे विजयदेवीने उसके लिए सिंहासन सजा दिया। मी निष्ठुरता की होती । यह सुन्दर घोड़ा आगे औरंगजेब गुणज्ञ था । उसने बादशाही सरचलकर इस राजपरिवारके निमित्त रत्नजटित दारोंके अपराध क्षमा कर दिये, उनके राज्यपद मृग प्रतीत हुआ । लौटा दिये और राजा चम्पतरायको उसके बहु. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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