Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 53
________________ pantasaitanistandardNasonsistarsesedenatanderwasitarasnotercitrusterstocdrashesitashastries ३ सर्वार्थसिद्धि अर्थात् तत्वार्थसूत्रकी आचार्य पूज्यपाद कृत संस्कृत टीका बहुत दिनोंसे मिलती नहीं थी । अब यह फिरसे छपाई गई है। अबकी बार कपड़ेकी जिल्द इ बधाई गई है । मूल्य दो रुपया । आत्मप्रबोध-श्रीकुमारनामक कविका बनाया हुआ एक है 1 अप्रसिद्ध ग्रन्थ भाषाटीका सहित छपाया गया है । आध्यात्मिक ग्रन्थ है । मूल्य बारह आने। मैनेजर, जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, हीराबाग, बम्बई। นางละเวงนี้เปนงในดินสินสินสินในดินเสียงปิด sustastastrotestandidatestastendinadiraimastatusfrJMARATRAM साहित्य पत्रिका प्रतिभा। ( संपादक, श्रीयुत पं० ज्वालादत्त शर्मा) प्रतिभाका छटा अङ्क शीघ्र प्रकाशित होनेवाला है । यह प्रति अँगरेजी मासके पहले सप्ताहमें प्रकाशित होती है। यदि आप साहित्यसंबन्धी लेख है ई पढ़ना चाहते हैं, तो प्रतिभाके ग्राहक बनिये । प्रतिभा रसमयी कवितायें। है और शिक्षाप्रद पर चुभती हुई गल्पें भी प्रकाशित होती हैं । वार्षिक मूल्य २)। है है । हम इसके विषयमें अधिक न कहकर हिन्दीकी सर्वश्रेष्ठ पत्रिका सरस्वतीकी सम्मति नीचे उद्धृत किये देते हैं: “प्रतिभा-यह एक नई मासिक पत्रिका है । मुरादाबादके लक्ष्मीई नारायण प्रेससे निकली है । हिन्दीके प्रसिद्ध लेखक पं० ज्वालादत्तजी शर्मा। । इसके संपादक हैं । सरस्वतीके पाठक आपसे खूब परिचित हैं । वे जानते र होंगे कि शर्माजी सरस, बामुहाविरा और साथ ही प्रौढ भाषा लिखने में कितने ई पटु हैं। ऐसे सुयोग्य संपादकके तत्वावधानमें आशा है प्रतिभाका जरदोत्तर। विकास होगा। इसका पहला अङ्क अप्रैल १९१० में प्रकाशित हुआ है । उसमें छोटे । बड़े १० लेख और ६ कवितायें हैं । साहित्य, शिक्षा, उद्योग धन्धा, विज्ञान, है जीवनचरित और आख्यायिका इतने विषयों पर इसमें लेख प्रकाशित हुए हैं। लेखोंके संवन्धमें सामयिकता और रोचकताका बहुत ध्यान रक्खा गया है।" पत्रव्यवहार करनेका पतामैनेजर 'प्रतिभा ' लक्ष्मीनारायण प्रेस, . मुरादाबाद। rarwarerarmaerarmeremermaneangrerarminorrearrararamanenrngongress Kasuttastavitautastestostouttastastavitadiastawstartkarse Ponscenamanennsonanmaninonenesmeworman Jain Education International Por Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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