Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 56
________________ (2) 1 सागारधर्मामृत सटीक आशाधर कृत / ) 6 प्रद्युम्नचरित महासेनाचार्यकृत // ) 2 लघीयस्त्रयादिसंग्रह अकलंभट्टकृत / ) 7 आराधनासार सटीक देवसेनाचार्य कृत / ) / / 3 पाश्वनाथचरित वादिराजसूरि कृत // ) 8 जिनदत्तचरित्र, गुणभद्र कृत 4 विक्रान्त कौरवीय नाटक हस्तिमल्ल कृत।) 5 चारित्रसार चामुण्डराय कृत 5 मैथिल परिणय नाटक , / ) 10 प्रमाणनिर्णय वादिराजसूरि कृत बच्चोंके सुधारनेके उपाय / इसमें बच्चोंकी आदते सुधारने, उन्हें सदाचारी और विनयशील बनाने, बुरेसे बुरे स्वभावके लड़कोंको अच्छे बनाने, उपद्रवियों और चिड़चिड़ोंको शान्त शिष्ट बनानेके अमोघ उपाय बतलाये गये हैं / प्रत्येक माता पिताको इसे पढ़ डालना चाहिए / इसके अनुसार चलनेसे उनका घर स्वर्ग बन जायगा / मू० // ) कोलम्बस / - अमेरिका खण्डका पता लगानेवाले असम साहसी कर्मवीर कोलम्बसका आश्रर्यजनक और शिक्षाप्रद जीवनचरित / अभी हाल ही छपकर तैयार हुआ है / नवयुवाओंको अवश्य पढ़ना चाहिए / मूल्य / / / ) मानवजीवन / * सदाचार और चरित्रसम्बन्धी अनेक अँगरेजी, मराठी, गुजराती, बंगला पुस्तकोंके आधारसे यह ग्रन्ध रचा गया है। सदाचारकी शिक्षा देनेके लिए और सच्चे मनुष्योंकी सृष्टि करनेके लिए यह ग्रन्थ बहुत अच्छा है / इस ग्रन्थक विना कोई घर, कोई पुस्तकालय, और कोई मन्दिर न रहना चाहिए / भाषा बहुत ही सरल और स्पष्ट है / मूल्य 1-) कपड़ेकी जिल्दका 1 / / उस पार / प्रसिद्ध नाटककार द्विजेन्द्रलालरायके एक सामाजिक नाटकका अनुवाद / स्टेज पर खेलनेल!यक अपूर्व नाटक है / हिन्दी में इसकी जाड़का एक भी नाटक नहीं है / प्रारंभमें एक विस्तृत भूमिकाके द्वारा इस नाटकके प्रत्येक पात्रके चरित्रकी खूबियां दिखलाई गई है / मूल्य सवा रुपया / / __ ग्रन्थपरीक्षा प्रथम भाग और द्वितीय भाग / लेखक, श्रीयुत बाबू जुगल किशोरजी मुख्तार / पहले भागमें जिनसमात्रिवर्णाचार, उमास्वामीश्रावकाचार और कुन्दकुन्दश्रावकाचार इन तीन ग्रन्थोंकी और दूसरे भागमें भद्रबाहुसंहिताकी समालोचना प्रकाशित की गई है / ये सब लेख जनहितेषीमें निकल चुके हैं / इनका खूब प्रचार होना चाहिए / मूल्य लागत मात्र रक्खा गया है / पहले भागका / और दूसरे भागका / ) __ मोक्षमार्गकी कहानियां / रत्नकरण्डश्रावकाचारमें जिन जिन स्त्री पुरुषों के 'दाह' आय हैं, उन सबकी 23 कथाओंका संग्रह / यह हाल ही छपी है / मूल्प सात आने / __ जैननित्यपाठसंग्रह / इसमें नित्यके उपयोगमें होनेवाले 33 भाषाके पाठोंका और तत्त्वार्थ तथा भक्ता. मर, इन दो कृत पाठोंका संग्रह है। कागज अच्छा, छपाई अच्छी / पहले जो संग्रह बम्बई में छपा था, उससे इसमें कई पाठ अधिक है / मूल्य बारह आने / मैनेजर, जैनग्रन्थरत्सुकर कीयालयागिरगांव-बम्बई. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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