Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 39
________________ अङ्क ८] पुस्तक-परिचय। न गंभीरता है और न कोई विशेषत्व । भूमिकाके मराठी पुस्तकका अनुवाद है। इसमें विदेशोंके ऐसे एक पैरेमें आप कुछ कह रहे हैं और दूसरेमें कुछ। २०-२५ स्त्री पुरुषोंका संक्षिप्त परिचय दिया पुस्तकमें यह लिखना आपने आवश्यक न समझा कि गया है, जिन्होंने अपनी जन्मभूमिकी रक्षाके लिए ये विवरण कौनसी पुस्तकके आधारसे लिखे गये हैं। अपने सर्वस्वका अर्पण कर दिया था। ऐसी पुस्त १३-१४ हिन्दी साहित्य प्रचारक ग्रन्थ. कोका घर घर प्रचार होना चाहिए। मूल्य मालाकी पुस्तकें । नरसिंहपुर (सी. पी.) के चार आने । श्रीयुत सेठ नाथूरामजी रेजाने उक्त नामकी १७सर्वियाका इतिहास । लेखक, झालराग्रन्थमालाके निकालनेका प्रयत्न किया है। मालाके पाटननरेश राजराना श्रीमान् भवानीसिंहजी बहादुर। पहले दो पुष्प हमें समालोचनार्थ प्राप्त हुए हैं। पहला है, प्र०, राजपूताना हिन्दीसाहित्य सभा, झालरापाटन । गुरु शिष्यसंवाद । इसमें स्वामी विवेकानन्द और पृष्ठसंख्या ८० । मूल्य पाँच आने । हमारे पाठक उनके कुछ शिष्योंका वार्तालाप है। पृष्ठ संख्या जानते हैं कि गतवर्ष जैनहितेच्छुके सम्पादक श्रीयुत ५४ । मूल्य चार आने । दसरा पुष्प है आर्थिक वाडीलालजी, सेठ विनोदीरामजी बालचन्दजी और सफलता। यह अंगरेजीकी 'फाय नानशियल सक- रायबहादुर सेठ कश्तूरचन्दजी आदिने हिन्दीके सेस । नामक पुस्तकके गुजराती अनुवादके आधा. ग्रन्थोंको सुलभ मूल्यमें प्रकाशित करनेके लिए लगरसे लिखी गई है । पृष्ठसंख्या ९: । मूल्य छह भग १० हजार रुपयेका चन्दा करके यह सभा आने । दोनों पुस्तकोंके अनुवाद कर्ता श्रीयुत स्थापित की थी। यह पुस्तक उसीकी ओरसे प्रकाशिवसहाय चतुर्वेदी हैं । दोनों पुस्तकोंकी छपाई शित हुई है । सभाके लिए यह बड़े गौरक्की बात उत्तम है । कागज भी अच्छा लगा है। है कि उसे 'एक नरेशकी लिखी हुई सुन्दर पुस्त ___कको प्रकाशित करनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है। १५-१६हिन्दी-गौरव ग्रन्थमालाकी पुस्त कें। हम अपने मित्र पं० उदयलालजी काशलीवालकी पुस्तक छोटी है, पर सर्वियाका स्थूल इतिहास जानइस ग्रन्थमालाका परिचय अपने पाठकोंको पहले नेके लिए बहुत अच्छी है । युद्धकी हालतपर विचार दे चुके हैं । इसके पाँचवें और छठे पुष्प हाल ही करनेके लिए सर्वियाकी भीतरी बातोंको समझनेमें प्रकाशित हुए हैं । पाँचवेंका नाम विवेकानन्द व - इससे बहुत सहायता मिलेगी। नाटक है।यह मराठीके प्रसिद्ध लेखक ए. बी. कोल्ह- १८ लोकमान्य तिलकके स्वराज्य पर१२ टकरके ग्रन्थका अनुवाद है । अमेरिकामें जाकर व्याख्यान और जमानतका मुकदमा । प्रका• हिन्दूधर्मका शंखनाद करनेवाले स्वामी विवेकान- शक, गंगाधर हरि खानवलकर, ग्रन्थप्रकाशक समिति न्दको मुख्य पात्र मानकर इस नाटकका कथानक बनारस । पृष्ठसंख्या २५० । मूल्य एक रुपया । तैयार किया गया है । कल्पना सुन्दर है । हास्य- विषय नामहीसे स्पष्ट है । देशभक्त तिलक महाशयके विनोद और मनोरंजनकी इसमें यथेष्ट सामग्री है। विचार प्रत्येक भारतवासीको पढ़ने चाहिए और लेखक हास्यरसके सिद्धहस्त लेखक जान पड़ते हैं । स्वराज्यके स्वरूपको समझ लेना चाहिए । पुस्तक यह नाटक मराठी रंगमंचपर खेला जा चुका है। पृष्ठसंख्या १५२ और ५ चित्र । मूल्य एक अच्छे समयमें प्रकाशित की गई है। रूपमा । छठे पुष्पका नाम है, स्वदेशाभिमान। यह नीचे लिखी पुस्तकें धन्यवादपूर्वक स्वीकार की । एक छोटी सी पुस्तक है, पर बड़ी अच्छी है । एक जाती हैं: Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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