Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 50
________________ जैनहितैषी [भाग १३ पीछे हम रक्खेंगे। इस पिछली बातको हुए भी ६ भट्टारकोंकी लीला। १५-२० वर्ष हो गये। अभी तक प्रतिमायें जहाँकी तेरहपन्थके साहित्यने भट्टारकोंके शासनकी जतहाँ हैं । पहले दिगम्बरी प्रतिवर्ष कुंआरके महीनेमें गाजेबाजेके साथ सरे बाजार होते हुए किलेके मन्दि- . डको हिला दिया है । पढ़े लिखे लोगोंमें और जैन धर्मका थोडासा भी स्वरूप समझनेवालोंमें अब उनरंमें पूजन करनेको जाते थे; परन्तु अब दो वर्षसे उनका यह पूजनको जाना बन्द हो गया है । क्यों र की कोई ‘पूछ' नहीं है। फिर भी जिन प्रान्तोंमें कि श्वेताम्बरी भाईयोंने कहा कि जिस तरह तुम ' धार्मिक ज्ञानकी कमी है और भाषाकी भिन्नताके हमारे यहाँके मन्दिरमें प्रति वर्ष पूजन करने आते। कारण तेरहपंथी भाषासहित्यका प्रचार नहीं हुआ हो उसी तरह हमको भी एक दिन आने दिया है, ये लोग खूब पुजते हैं और लोगोंके भोलेपनका करो। यदि हमको न आने दोगे तो हम भी न लाभ उठाकर मनमाना अत्याचार करते हैं । गुजमन्दिरकी चावी देंगे ओर न पूजन करने देंगे। रात, बरार, महाराष्ट्र और कर्नाटक प्रान्त इनके यह बात दिगम्बरियोंको पसन्द नहीं आई । अब वे अड्डे हैं । इन लोगोंके पास लाखों रुपयोंकी सम्पत्ति न पूजन करने जाते हैं और न उन्हें आने देते हैं। है, घोड़ा-गाड़ी, रथ-पालकी, नौकर चाकर, हमारी समझमें दोनों तरफवालोंको मिलकर यह चोपदार छड़ीदार, आदि सारे सजधजके सामान हैं। झगडा तय कर डालना चाहिए और अपनी अपनी रेशम और / जरीके वस्त्र, सोने चाँदीके पात्र, इत्र, प्रतिमायें अपने अपने मन्दिरोंमें रख लेना चाहिए। फुलेल, आदि सभी भोगोपभोगके पदार्थ इनके अदि ऐसा न किया जायगा तो आगे मन्दिरोंकी सामने उपस्थित रहते हैं । दश पन्द्रह रुपया रोजसे आमदनी और सम्पत्ति आदिके सम्बन्धमें झगड़ा हो कमका खर्च शायद ही किसी भट्टारकका होगा। सकता है। " उक्त भाई साहब एक बातकी ओर ये एक तरहके राजा हैं । अपनी रियासतके प्रत्येक और भी ध्यान दिलाते हैं । शिवपुरसे १४ मीलपर श्रावकसे ये वार्षिक कर लेते हैं और भोजनके समय दातारंदा नामका गाँव है । वहाँ एक मन्दिर है गहरी ' दक्षिणा लेते हैं। जो नहीं देता है उसके जिसकी देखरेख करनेवाला या पूजन प्रक्षाल करन- सिर हो जाते हैं, भोजन नहीं करते हैं, और वाला कोई नहीं है । वहाँके जमींदार कहते हैं कि इस मन्दिरकी प्रतिमायें सरकारमें सूचना करके ले स्थामादिकी अनुकूलता हुई तो उससे डंडे मारकर जाओ। परन्तु यहाँके (शिवपुरके ) भाई इस बात भी बसूल कर लेते हैं ! इनके नौकर चाकर और पर ध्यान नहीं देते।" छड़ीदार पुलिसके सिपाहियोंसे किसी बातमें कम नहीं । इनके कर भी कई तरहके हैं । दक्षिणके - - शिवपुरके समान और भी कई स्थानोंमें यह कई भट्टारक श्रावकोंको विधवाओंके साथ ब्याह बात देखी गई है कि दिगम्बरी मन्दिरों में श्वेताम्बरी करनेकी और विकाहसम्बन्ध रद करनेकी ( तलाक प्रतिमायें और श्वेताम्बरी मन्दिरोंमें दिगम्बरी प्रति. , ' की ) आज्ञा दिया करते हैं और इस कार्यके लिए मायें रहती थीं। कई स्थानोंमें तो अब भी हैं। . जो टैक्स मुकर्रर है उससे हजारों रुपयोंकी प्राप्ति इससे यह अनुमान होता है कि दिगम्बरी और श्वेताम्बरी भाइयों में इस समय-इस शिक्षा और करते हैं । पंचायती कामकाजोंमें भी इनका दखल सभ्यताके दिनोंमें-जितना वैर विरोध बढ गया है. रहता है। उनके बड़े बड़े फरमान निकला करते उतना सौ डेड सौ वर्ष पहले नहीं था। उस समय है और उनके मारे श्रावकगण थर थर काँपते हैं। दोनों हिल मिलकर रहते थे और धार्मिक बातोंमें ये प्रतिवर्ष किसी चुने हुए स्थानमें चातुर्मास किया भी एक दुसरेके बाधक नहीं होते थे। करते हैं और इस समय इनके खूब गहरे हो जाते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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