Book Title: Jain Hiteshi 1917 Ank 08
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 48
________________ जैनहितैषी [ भाग १३ कराई थी और गोम्मटसारके कर्ताने जिनकी जगह १ तत्वानुशासन-आचार्य नागसेनकृत । बहुत जगह प्रशंसा की है । इस ग्रन्थमें श्रावकोंके और ही महत्त्वका ग्रन्थ है। मुनियोंके दोनोंके आचारका वर्णन है । ग्रन्थ गद्यमें २ इष्टोपदेश-आचार्य पूज्यपादस्वामीकृत । है । पृष्ठसंख्या १०० । मूल्य छह आने। मूल और पण्डितप्रवर आशाधरकृत संस्कृत टीका। १० प्रमाणनिर्णय । एकीभावस्तोत्रके कर्ता ३ पात्रकेसरीस्तोत्र--आचार्य विद्यानन्दिकृत । प्रसिद्ध नैयायिक वादिराजसूरि इस ग्रन्थके कर्ता ४ नीतिसार ( समयभूषण )-आचार्य इन्द्रनहैं । यह ग्रन्थ अभीतक दुर्लभ और अप्रसिद्ध था। न्दिकृत । न्यायशास्त्रका प्रारंभक ग्रन्थ है । पाठ्यग्रन्थ होनेके ५ योगसार-योगचन्द्राचार्यकृत । योग्य है। पृष्ठ संख्या ७० । मूल्य पाँच आने। ६ तत्त्वसार-आचार्य देवसेनकृत । ११ त्रैलोक्यसार सटीक । आचार्य ७ ज्ञानसार- , ,, नोमचन्द सिद्धान्तचक्रवर्तीका यह ग्रन्थ मूल, ८ नवति प्रायश्चित्त-अज्ञातनामाकृत । संस्कृतछाया और आचार्य माधवचन्द्रकी संस्कृत- ९ मोक्षपश्चाशिका- , ,, टीकासहित छप रहा है । इस ग्रन्थका अधिक जो ग्रन्थ छप रहे हैं, उनमें सहायताकी आवपरिचय देना व्यर्थ है । करणानुयोगका यह श्यकता है ।जो महाशय सहायता देंगे उनका नाम बहुत ही प्रसिद्ध ग्रन्थ है । पृष्ठसंख्या लगभग ४०० ग्रन्थोंके ऊपर छपाया जायगा। प्रत्येक ग्रन्थकी होगी और मूल्य लगभग सवा रुपया। कमसे कम १२५ प्रति धर्मार्थ दान करनेके लिए नीचे लिखे ग्रन्थोंके छपानेका प्रबन्ध हो जो महाशय लेंगे उनका चित्र पुस्तकके साथमें रहा है: __ लगवा दिया जायगा। पर्वके दिनोंमें पुस्तकदान कर१२ आचारसार । यह यत्याचारका ग्रन्थ नेके समान कोई दान नहीं है। है । इसके कर्ता वीरनन्दि नामके आचार्य हैं, ४ महात्मा गाँधीकी पोशाक । जो १२वीं शताब्दिके लगभग हुए हैं। चन्द्र- इस समय देशभक्त महात्मा मोहनदास करमचन्द प्रभचरित, कर्तासे ये पृथक् हैं । यह ग्रन्थ गाँधीका नाम देशव्यापी हो रहा है, अतएव हमारे अतिशय दुर्लभ और अप्रसिद्ध है। चरित्रसारके ही पाठक भी उन्हें अवश्य जानते होंगे। जबसे चम्पाबराबर होगा। रनकी प्रजाके कष्टोंको-जो उसे वहाँके नीलव्यव.... १३ नयचक्र । यह देवसेन नामक आचार्य- सायी गोरोंके द्वारा सहने पड़ते हैं-दूर करनेके का बनीया हुआ प्राकृत ग्रन्थ है, संस्कृत छाया लिए वे कार्यक्षेत्रमें उपस्थित हुए हैं तबसे गोरोंकी और उत्थानिकाके सहित छपेगा । यह बहुत ओरसे उनपर तरह तरहके आक्षेप किये जा रहे हैं। प्राचीन ग्रन्थ है । विद्यानन्दिस्वामीने अपने श्लोक- अभी थोडे दिन पहले मि० अरविनने पायनियरमें वार्तिकालंकारमें इसकी गाथायें उद्धृत की हैं और एक लेख प्रकाशित कराया था और उसमें गाँधीइनका उल्लेख किया है । नयोंका स्वरूप समझनेके जीकी बहुतही सादी,कम कीमती, और उनके प्रान्तकी लिए यह बहुत ही महत्त्वकी चीज है। परंपरागत पोशाककी-जिसे देखकर कोई यह अनुमान १४ तत्त्वानुशासनादिसंग्रह । इसमें नीचे नहीं कर सकता कि वे देशके एक बड़े भारी नेता हैंलिखे कई छोटे छोटे ग्रन्थोंका संग्रह रहेगा । प्रायः दिलगी उड़ाई थी। महात्मा गाँधीने उक्त लेखका जो सभी ग्रन्थ अपूर्व और दुर्लभ रहेंगे। पहले ४ ग्रन्थ उत्तर दिया है, उसके कुछ अंशोंको हम यहाँ इस संस्कृत और शेष सब प्राकृत हैं। लिए उद्धृत करते हैं कि उनसे हमारे समाजके विदेशी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org |

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