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जैनहितैषी
[भाग १३
. १ जैनगजल गुलचमन बहार प्र०, भैरूलाल आदिपराणका अवलोकन ।
नौ रतनलाल बोहरा, लाखन कोटड़ी अजमेर । ___ २ पाँचवीं रिपोर्ट, पद्मावती परिषत् । प्र०, पं० (लेखक-श्रीयुत बाबू सूरजभानजी वकील।) वंशीधरजी शास्त्री, शोलापुर ।
___पाठकोंको भगवज्जिनसेन और गुणभद्राचार्यकृत ३ साचा सुखनो उपाय ।ले., ब्रह्मचारी शीतल- आदिपुराणका अधिक परिचय देनेकी आवश्यकता प्रसादजी और प्र०, जैनविजयप्रेस, सूरत। नहीं । यह बहुत ही प्रसिद्ध ग्रन्थ है और जैनधर्मके
४ सुमतिकुमतिमोहअन्धकार नाटक । १०, पुराणग्रन्थोंमें यही सबसे अधिक महत्त्वकी दृष्टि से बाबू फूलचन्द जैन, शिकोहाबाद, मैनपुरी। देखा जाता है । यह ' महापुराण ' नामक ग्रन्धका
५ बारहमासा तथा स्तवनसंग्रह । प्र०, आत्मा- पूर्वभाग है । इसके ४२ पर्व जिनसेन स्वामीके और नन्द जैनसभा, अम्बाला शहर ।
शेष पाँच पर्व गुणभद्र स्वामीके बनाये हुए हैं। ६. जैन इतिहास अंक २। प्र०, आत्मानन्द उपलब्ध पुराणग्रन्थों में पद्मपुराण और हरिवंशपुराण : ट्रेक्ट सुसाइटी, अम्बाला शहर।
ये दो ही पुराण ऐसे हैं, जो इससे पहलेके बने हुए ___श्राविकाधर्मदर्पण, ८ जैनशिक्षण पाठमाला, हैं; परन्तु केवल आदिनाथ भगवान्के चरित्रको ९ जम्बूगुणरत्नमाला । प्र०, कुँवर मोतीलाल रांका, विस्तारसे बतलानेवाला तो यही सबसे पहला पुराण जैनपुस्तकप्रचारक कार्यालय, व्यावर ( अजमेर )। है। सुप्रसिद्ध मंत्री और सेनापति चामुण्डरायका
१० सदाचाररक्षा, प्रथमभाग । ले०, सेठ बनाया हुआ ‘विषष्ठिलक्षणमहापुराण ' नामका जवाहरलालजी जैनी। प्र०, आत्मानन्द जैनपुस्तक एक कनड़ी भाषाका ग्रन्थ है। उसमें चौबीसों तीर्थप्रकाशक मण्डल, नौधरा, देहली।
करोंके चरित्र लिखे गये हैं । उसके पारंभमें लिखा ११ वेदमीमांसा । ले,पं० पुत्तूलाल जैन। प्र०, है कि “इस पुराणको पहले कूचि भट्टारक, फिर जैनमित्रकार्यालय, सूरत।
नन्दि मुनीश्वर, फिर कविपरमेश्वर और तत्पश्चात .१२ मिथ्यातमोध्वंसार्क । जैनमित्रमंडली देह- जिनसेन-गुणभद्रस्वामी, इस प्रकार परम्परासे कहते लीका ट्रेक्ट नं० १। प्र०, लालाश्यामलालजी आये हैं और उन्हींके अनुसार मैं भी कहता हूँ।" कागजी, चावडी बाजार, देहली।
इससे मालूम होता है कि आदिपुराणसे पहले कूचि, १३ वाषिर्क विवरण, जैनशिक्षाप्रचारक सोसा- नन्दि और कविपरमेश्वरके बनाये हुए इसी विषइटी, पहाड़ी धीरज, देहली। प्रकाशक, मंत्री, यके ग्रन्थ थे। कवि परमेश्वर या कवि परमेष्ठीका बनारसीदासजी जैन ।
उल्लेख तो स्वयं जिनसेन स्वामीने भी किया है । गुणभद्रस्वामीने भी उत्तरपुराणकी प्रशस्तिमें स्वीकार किया है कि कविपरमेश्वरकी बनाई हुई 'गद्यकथा' इस आदिपुराणकी माता है-' कविपरमेश्वरनिगदितगद्यकथामातृकं पुरोश्चरितम् ।' अर्थात् इस आदिपुराणके पहले कविपरमेश्वरका बनाया हुआ कोई ग्रन्थ था, जिसके आधारसे यह पल्लवित करके बनाया गया है; परन्तु अब उक्त ग्रन्थों में से कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है, इसलिए यह निश्चय नहीं हो सकता है कि आदिपुराणमें उनकी अपेक्ष
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