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जन धर्म का प्राचीन इतिहास- भाग २
मथुरा, नालंदा, पुण्तवर्धन, कोशाम्बी, अयोध्या, पुरिमतालपुर, उज्जैनो, मल्लदेश, दशार्ण, केकयदेश, कोलागसन्निवेश, किरात, श्रावस्ती, कुमारगिरि, और नेपाल ग्रादि विविध देशों और नगरों में विहार कर कल्याणकारी सन्मार्ग का उपदेश दिया। असंख्य प्राणियों के अज्ञान-अन्धकार को दूर कर उन्हें यथार्थ वस्तुस्थिति का बोध कराया। प्रात्मविश्वास बढ़ाया, कदाग्रह दूर किया । अन्याय अत्याचार को रोका, पतितों को उठाया, हिंसा का विरोध किया. उनके बहमों को दूर भगाया और उन्हें संयम की शिक्षा देकर प्रात्मोत्कर्ष के मार्ग पर लगाया तथा उनकी अन्धश्रद्धा को समीचीन बनाया। दया, दम, त्याग और समाधि का स्वरूप बतलाते हए यज्ञादि क्रियाकाण्डों में होने वाली भारी
सा को दिया...- वास्तविक स्वरूप और उनके रहस्य को समझाया, जिससे विलविलाट करते हुए पशु-कूल को अभयदान मिला । जन समूह को अपनी भूलें ज्ञात हुई, और वे सत्पथ के अनुगामी बने ।
भगवान महावीर का निर्वाण
इस तरह विहार करने हुए भगवान महावीर पावा नगर के मनोहर उद्यान में पाये और तालाब के मध्य एक महामणिमय शिलातल पर स्थित होकर दो दिन पूर्व बिहार से रहित हो कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की रात्रि के व्यतीत होने पर स्वातियाग में तृतीय शुवल व्यान समुच्छिन्न क्रियाप्रतिपाति में निरत हो मन-बचन-कायरूप योगत्रय का निरोध कर चतुर्थ शक्लध्यान व्युपरतक्रियानिवृत्ति में स्थित होकर अवशिष्ट अधाति कर्मचतुष्टय का विनाश कर अमावस्या के प्रातःकाल अकेले भगवान महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए' । किन्तु उत्तर पुराण में एक हजार मुनियों के साथ मुक्त होना लिखा है। १. (क) पच्या पावारण्यरे कत्तियमासे किण्ह चोद्दसिए । सादीए रतीए सेसरयं खेन निव्वानो।
-जयध भा० १ पृ०६१ (ख) कत्तिय किण्हे चोद्दसि पन्च से सादिशामणक्खत्ते। पावाए गयरीए एक्को वीरेसरो सिद्धा।
(तिलो ५० ४-१२०८) (ग) कत्तियमासकिण्हाक्वचौदसदिवसे च केवलणारेण सह एस्य गमिव रािउनदो। अमावामीए परिरिणवारण पूजा
सालदेविदेहि कया। -धव० पु०६ पृ० १२५ २. (घ) क मापावापुरं प्राप्य मनोहरवनान्तरे ।
बहनां सरसां मध्ये महामरिणशिलातल ।।५०६|| स्थित्वा दिनद्वयं वीजबिहारो बजनिर्जरः । कृष्णकार्तिकपक्षस्य चतुर्दश्यां निशात्यये ।।५१०|| स्वातियोगे तृतीयेत शुक्लध्यानपरायणः । कृतत्रियोगसंरोधः समुच्छिन्न क्रियं श्रितः ।।५११।। हत पाति चतुष्कः सन्न शरीरो गुणात्मकः । गन्ता मुनि सहने रण निर्वाणं सर्ववाञ्छितम् ।।५१२।।
- उत्तर पुराण पर्व ७६, श्लोक ५० से ५१२ (3) पपवनदीपिकाकुल विविध इमखण्डमण्डिते रम्ये ।
पावा नगरोद्याने व्युत्सर्गरंग स्थितः स मुनिः ।।