Book Title: Jain Dharma ka Maulik Itihas Part 4 Author(s): Hastimal Maharaj Publisher: Jain Itihas Samiti JaipurPage 17
________________ कि ऐसी शंका करने से पहले यह अवश्य सोच लें कि वे कहीं "चोर की दादी में तिनका' की लोकोक्ति को तो चरितार्थ करने नहीं जा रहे हैं। आलोचकों से भी नम्र निवेदन करूँगा कि वे आलोचक बनकर सुसभ्य भाषा में आलोचना करें, निन्दक बन कर निन्द्य, अनार्योचित असभ्य भाषा में नहीं। आलोच्य तथ्य के विरुद्ध ठोस आर्ष प्रमाण प्रस्तुत कर आलोचना करें न कि विक्षिप्त रथ्या पुरुष के अनर्गल प्रलाप की भाति। जैसा कि इतिहास माला के तृतीय भाग के प्रकाशन से पूर्व किसी दूसरे के नाम से उससे भिन्न किसी दूसरे ने ही किया था। इस इतिहास माला के पाठकों से मैं यह भी निवेदन कर देना चाहता हूँ कि जिस कालावधि के इतिहास का आलेखन प्रस्तुत भाग के किया गया है, वह काल जैन इतिहास का सर्वाधिक दुर्भाग्यपूर्ण काल है। उस काल के जैन साहित्य को पढ़ते समय मुझे ऐसा प्रतीत होने लगता था कि क्या श्रमण भगवान महावीर के अनुयायियों के सिर पर शैतान सवार हो गया है जो एक दूसरे को देखते ही परस्पर एक दूसरे की पिण्डुली को पकड़ने को दौड़ रहे हैं, एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिये एक दूसरे के विरुद्ध डाकिनी साकिनी मुद्गल जैसे अशोभनीय शब्दों का प्रयोग कर महामच्छ के नासाग्र पर रहने वाले अति लघुकाय तंदुल मच्छ की भाति घोर मानसिक हिंसा का ताण्डव नृत्य कर रहे हैं। जहां तीर्थंकर कालीन इतिहास से लेकर देवर्द्धि क्षमा श्रमण के समय तक के इतिहास का सम्पादन करते समय मैं अपने आपको बड़ा पुण्यशाली, सौभाग्यशाली समझता था वहीं वीर निर्वाण पश्चात् १५वीं शताब्दी से २०वीं शताब्दी की मध्यावधि के इतिहास का सम्पादन आकलन करते समय मैं अपने आपको संसार का सबसे चोटी का दुर्भाग्यशाली अनुभव कर रहा था । अस्तु , जो बीती सो बीत चुकी, अब उसकी याद सताये क्यों ? मेरे इस आलेखन-सम्पादन कार्य से किसी को कष्ट हुआ हो तो, मैं विनम्रतापूर्वक क्षमा याचना करता हूँ। गजसिंह राठौड़ न्याय व्याकरण तीर्थ ( xiv ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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