Book Title: Jain Dharm ka Pran
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania, Ratilal D Desai
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Delhi

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Page 194
________________ जैनधर्म का प्राण कर्म से छूटने के उपाय जैन शास्त्र मे परम पुरुषार्थ-मोक्ष-पाने के तीन साधन बतलाये हुए है : (१) सम्यग्दर्शन, (२) सम्यग्ज्ञान और (३) सम्यक चारित्र। कही-कही ज्ञान और क्रिया दो को ही मोक्ष का साधन कहा है। ऐसे स्थल मे दर्शन को ज्ञानस्वरूप---ज्ञान का विशेष-समझकर उससे जुदा नही गिनते । परन्तु यह प्रश्न होता है कि वैदिक दर्शनो मे कर्म, ज्ञान, योग और भक्ति इन चारो को मोक्ष का साधन माना है, फिर जैनदर्शन मे तीन या दो ही साधन क्यो कहे गए है ? इसका समाधान इस प्रकार है कि जैनदर्शन मे जिस सम्यक्चारित्र को सम्यक् क्रिया कहा है उसमे कर्म और योग दोनो मार्गों का समावेश हो जाता है, क्योकि सम्यक्चारित्र मे मनोनिग्रह, इन्द्रिय-जय, चित्तशुद्धि, समभाव और उनके लिए किये जानेवाले उपायो का समावेश होता है । मनोनिग्रह, इन्द्रिय-जय आदि सात्त्विक यज्ञ ही कर्ममार्ग है और चित्त-शुद्धि तथा उसके लिए की जानेवाली सत्प्रवृत्ति ही योगमार्ग है। इस तरह कर्ममार्ग और योगमार्ग का मिश्रण ही सम्यक्चारित्र है। सम्यग्दर्शन ही भक्तिमार्ग है, क्योकि भक्ति मे श्रद्धा का अश प्रधान है और सम्यग्दर्शन भी श्रद्धारूप ही है। सम्यग्ज्ञान ही ज्ञानमार्ग है। इस प्रकार जैनदर्शन मे बतलाये हुए मोक्ष के तीन साधन अन्य दर्शनों के सब साधनो का समुच्चय है । आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व और पुनर्जन्म कर्म के सबन्ध में ऊपर जो कुछ कहा गया है। उसकी ठीक-ठीक संगति तभी हो सकती है जब कि आत्मा को जड़ से अलग तत्त्व माना जाय । आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व जिन प्रमाणो से जाना जा सकता है उनमे एक पुनर्जन्म भी है, इतना ही नहीं, बल्कि वर्तमान शरीर के बाद आत्मा का अस्तित्व माने बिना अनेक प्रश्न हल ही नही हो सकते। ___ बहुत लोग ऐसे देखे जाते है कि वे इस जन्म मे तो प्रामाणिक जीवन बिताते है, परन्तु रहते है दरिद्री; और ऐसे भी देखे जाते है कि जो न्याय, नीति और धर्म का नाम सुनकर चिढते है, परन्तु होते है वे सब तरह से सुखी । -ऐसे अनेक व्यक्ति मिल सकते हैं जो है तो स्वय दोषी और उनके दोषो

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