Book Title: Jain Dharm ka Pran
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Dalsukh Malvania, Ratilal D Desai
Publisher: Sasta Sahitya Mandal Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 223
________________ २०१ जैनधर्म का प्राण का तत्त्व इन्द्रियो और मनोवृत्तियो को जीतने मे है, और ब्राह्मणधर्म का तत्त्व विश्व की विशालता को आत्मा मे उतारने मे है।" __ इतने सक्षेप पर से हम यह जान सकते है कि बुद्धि अन्त मे एक ही सत्य मे विराम लेती है और साथ ही यह भी समझ सकते हैं कि व्यवहार के चाहे जितने भेदो और विरोधो का अस्तित्व क्यो न हो, परन्तु परमार्थदृष्टि कभी लुप्त नही होती। [गुजराती साहित्य परिषद के अहमदाबाद मे सम्पन्न १६५६ के अक्तूबर के अधिवेशन मे तत्वशान विभाग क अध्यक्षपद से दिये गये भाषण मे से ]

Loading...

Page Navigation
1 ... 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236